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जैनत्व जागरण.....
क्षेत्रपाल है । शिखर जी पर्वत के क्षेत्रपाल भूमियाजी है उसी प्रकार कैलाश के क्षेत्रपाल मणिभद्र यक्ष है । इसके अलावा कैलाश क्षेत्र में शूलपाणि यक्ष के वास का भी पुराणों में उल्लेख हमें मिलला है ।
अष्टापदकी विलुप्ति और कैलाश शब्द का प्रचलन इसकी झलक हमें ऐतिहासिक विवरणों से खोजनी पड़ेगी । एक समय ऐसा आया जब सब लोग यह मानने लगे थे कि अष्टापद आलोप हो गया और कैलाश विराजमान है । जहाँ अष्टापद से ऋषभदेव को याद करते थे वहीं कैलाश को शिव के रूप में देखने लगे ऐसा कब से हुआ, इसका उद्देश्य क्या था यह जानना आवश्यक है । यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि प्राचीन साक्ष्यों को मिटाने एवं अपना बनाने के लिए उन्हें नये नाम दिये जाते रहे हैं जिसके सैकड़ों प्रमाण हमारे पास उपलब्ध है। अष्टापद तीर्थ का महत्व कम करने के लिए एवं उसे अपना साबित करने के लिये परवर्ती काल में ब्रह्म आर्यों ने कैलाश का नाम दिया । ऋषभदेव के निर्वाण के समय यह पूरी पहाड़ी श्रृंखला अष्टापद के नाम से जानी जाती थी। उनके निर्वाण के पश्चात् उनकी स्मृति में जो स्तूप बना वहीं परवर्तीकाल में कैलाश के नाम से प्रसिद्ध हुआ । उत्तर भारत में जब कोई स्वर्गवासी होता तो उसके लिए कहा जाता कि यह कैलाशवासी हो गया । इस प्रकार ऋषभदेव स्वामी की निर्वाण भूमि की स्मृति कैलाश के नाम से आज भी जीवन्त है । कैलाश यात्रा के तीसरे चरम में डॉ. वेलेजा की रिपोर्ट के कुछ अंशों का उल्लेख है जो अष्टापद की खोज की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण है । The earliest archaeological horizon detectable at Mount Kailas belongs to the so called Zhang Zhung civilization a broadly defined cluster of cultural orders spanning the first millennium BCE and first millennium CE over a large area of Upper Tibet.
The most salient physical feature of the Zhang zhung civilization at Mount Kailas in the remains of an extensive network of all stone cobbelled residences known in the native parlance as dokhong These are among the highest archaeological remains found any where in Uper Tibet. They