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जैनत्व जागरण....
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१०. अरहंत - सब भव बीजांकुर क्षीण करने के कारण अरहंत. ११. सर्वज्ञ - चार घातिय कर्म को क्षय करके केवलज्ञान, केवल दर्शन
प्राप्त करने के कारण वीतराग सर्वज्ञ कहलाते है। तीर्थंकरों में ये सभी गुण होते हैं ।
वर्तमान इतिहासकारों ने श्रमणों की कुछ सामान्य विशेषताएं बतायी है । जो प्राचीन श्रमण धर्म की भी विशेषताएँ है
(१) आत्मा का अस्तित्व. (२) मूर्तिपूजा (३) कर्म सिद्धान्त (४) संसार अनन्त और अनादि (५) अचेलकता
सब मनुष्य व्रात्य, निर्ग्रन्थ, जिन, और बुद्ध हो सकते हैं लेकिन तीर्थंकरों की एक विशेषता उन्हें इन सबसे अलग करती है । यद्यपि केवलज्ञान सभी को होता है लेकिन तीर्थंकर वे होते हैं जो केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ की स्थापना करते हैं । जबकि जिन, बुद्ध, निर्ग्रन्थ, व्रात्य आदि केवलज्ञान तो प्राप्त करते हैं लेकिन चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ की स्थापना नहीं करते । प्राचीन काल में इस चतुर्विध संघ को ही तीर्थ कहा जाता था और इस तीर्थं के संस्थापक तीर्थंकर कहलाते थे।
___ केवली और तीर्थंकर दोनों में ज्ञान की समानता रहती है। परन्तु एक अन्तर उन्हें अलग रखता है। तीर्थंकर स्व-कल्याण के बाद पर-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं । वे तीनों लोकों के उद्धारक होते हैं। उनका बल, वीर्य जन्म से ही अनन्त होता है । कथा साहित्य में नवजात शिशु महावीर द्वारा चरण अंगुष्ठ से मेरु पर्वत को कंपित करने का आख्यान प्राप्त होता है। एक प्रमुख विशेषता जो तीर्थंकरों में होती है वह उनका जन्म क्षत्रियकुल में होना । जैन दर्शन में जातिवाद का कोई स्थान नहीं है तब ऐसा क्यों माना गया है कि तीर्थंकरों का जन्म क्षत्रिय कुल में होगा? ब्राह्मण ब्रह्मचर्य