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जैनत्व जागरण.....
खंभे बनाए गये थे, जो अब नहीं है। लेकिन टूटे अंशों को देखकर इनके होने का आभास होता है । पूर्व दिशा के दीवार के निचले अंश में लगभग दो फुट ऊंचाई में एक हाथी का मुंह बना हुआ है। भीतर के जल निष्कासन के लिये इसका व्यवहार होता था । हाथी के मुंह से निकला पानी पत्थर के चहबच्चे में जमा होता था । अभी वह नहीं है । देउलघाटा, पाकबिड़रा तेलकूपी के देवालयों में भी ऐसी जल निष्कासन प्रणाली पाई जाती है । लेकिन हर तरफ ही हाथी का मुंह बना हो, ऐसी बात भी नहीं है । तीन दीवार के बन्धवा वाले अंश में तीन जगहें बनी हुए है । ये चौड़ाई में २ फुट और लम्बाई में ३ फुट है । ऊपर की तरफ पूर्व दिशा के दीवार . पर लता, फूल, पत्ते और डाल पर बैठा पक्षी खुदा हुआ है। फिर रेखा से अंकित नक्शा जैसा चित्र बना हुआ है। सबसे अंत में जो आमलक है, उसकी आकृति प्रस्फुटित कमल जैसी है और जिससे पाँच पद्म या कमल की आकृति के खंड को ऊपर एक ही साथ जोड़कर एक पूर्णांग रूप दान करता हुआ दिखाया गया है । इस तरह की शिला पुरुलिया के लगभग सभी खंडहरों में देखने को मिलती है।
इस देवालय में फिलहाल लोहे का गेट लगाया गया है । जैसे पाकबिड़रा के देवालय में लगाया गया है। पूर्व से पश्चिम की दीवार की तरफ बनायी हुई एक वेदी । इसकी लम्बाई ६.५ फुट और चौड़ाई ३ फुट की है। फिलहाल वेदी पर सीमेंट लगवाकर इसकी प्राचीनता को नष्ट किया गया है । कई साल पहले तक देवालय के भीतर वेदी के सम्मुख पूरब दिशा की तरफ एक चौकोना सा गर्भगृह था, स्थानीय चरवाहे बाँस की लट्ठी को गड्ढे के भीतर घुसाकर उसकी गहराई नापते थे। अंदर क्या था आजतक हमें नहीं पता चला और यह बात काफी रहस्यमय सी प्रतीत होती है । लेकिन आज उस गर्भगृह के मुँह को बन्द कर दिया गया है । पत्थर और सीमेन्ट से ढंककर वह आँखों से ओझल हो गया । कक्ष के भीतर कोई खोदा हुआ अंश नहीं है, जिसमें चीजें रखी जा सके। बाहर से यह देवालय बड़ा लगते हुए भी भीतर से यह उतना विशाल नहीं लगता ।
इस समय भीतर किसी प्रकार की मूर्ति नजर नहीं आती । अंचल