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________________ जैनत्व जागरण....... बोड़ाम में पाये गए शिलालेख से भी जान सकते है । 1 मगध और राढ़ में पालवंश का आधिपात्य था । पालसम्राट रामपाल के साथ रूद्रशिखर की मित्रता थी - इतिहास में इसका स्पष्ट प्रमाण मिलता है। अपने पैतृक राज्य के उद्धार के समय रूद्रशिखर ने रामपाल की सहायता की थी । ऐतिहासिक सूत्रों से पता चलता है कि मानभूम, पुरुलिया, पंचकोट और तैलकम्प के चारों ओर जितने भी राज्य थे, उनके साथ रामपाल की मित्रता थी । उस जमाने का तैलकम्प राज्य दामोदर के दक्षिण से काँसाई के उत्तर तट तक फैली हुई थी । पश्चिम में झालदा से दक्षिण में बुधपुर तक इसकी सीमा था । यह इस लिपि से ही प्रभावित होती है । जिसमें कहा गया हैं २८१ राढ़ से घिरे हुए पंचद्रिश्वर की सीमा को कोई भंग न करे । राजा रुद्रशिखर जैन धर्मी थे क्योंकि उनके समय जैनधर्म ने राढ़, विशेषतः मानभूम में विस्तारलाभ कर लिया था - यह प्रमाणित होता हैतेलकूपी, बान्दा, पाड़ा, शाँका, बोड़ाय, पाकबिड़रा, बुधपुर आदि के पुरातात्विक अवशेषों स्थलों से । D. V. C. (दामोदर वैली कॉरपोरेशन) के कारण आज तेलकूपी बन्दरगाह पूरी तरह पानी के नीचे डूब चुका है । सोचने पर आश्चर्य होता है कि D.V.C. के कार्यकारिणी सदस्य पंचेत डैम बनाते समय तेलकूपी के प्रख्यात मंदिरों की तरफ एकबार भूलकर भी नहीं देखा । वे एकबार के लिए इन दुर्लभ ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने की बात भी नहीं सोची । इसीकारण १९५७ की उस रात को तेलकूपी पानी में डूब गया। लोग बेघर हुए, बेसहारे बन गए । सारे मवेशी पानी में बह गए। अब प्रश्न है कि तेलकूपी पानी में डूबने से पहले यहाँ कितने मंदिर थे ? इसका जबाव हमें D.J. Beglar रचित 'Report of a Tour through the Bengal Province' नामक रचना में प्राप्त होता है । १८७८ में लिखे गए इस वर्णन में उन्होंने २० मंदिरों के होने की बात कहीं है। इसके अलावे, वे वहाँ पर कुछ ईंटों और पत्थरों के खंडहर देखे थे जो आज पूरी तरह ध्वंस हो चुके हैं । १९०२ में ब्लक ने १० मंदिरों को वहाँ पर देखा था । आज सिर्फ तीन ही मंदिर किसी प्रकार वहाँ टिके हुए हैं। लेकिन उनमें
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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