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जैनत्व जागरण.......
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यह स्फटिक के पत्थरों से बना है । चार दीवारों में चार तीर्थकरों की चार मूर्तियां खुदी हुई है ।
ईंट का देवालय : ईंट से बने हुए देवालय, पुरुलिया के निर्माण शैली का एक महत्वपूर्ण अंग है । इस समय गिरते हुए, विलुप्त होते हुए ईंट से बने जो प्राचीन मंदिर आम दर्शक देख पाता है, वे हैं - देउलघाटा, आड़घा पाड़ा, छोटलरामपुर आदि । इसके अलावे, जिन सब जगहों पर कभी ईंटी का देवालय था, चुके अब मिट्टी में मिल चुका है । ये जगह हैं- शाँका, देउलभिड़या, पाकबिड़रा, मंगलदा आदि। हो सकता है, अतीत में और भी बहुत सारे पत्थर या ईंटों के प्राचीन देउल होंगे, लेकिन आज वे सब विलुप्त हो चुके हैं । इन सभी टूटे-फूटे और विलुप्त देवालयों का समयकाल १०वीं सदी से १२वीं सदी है । बाद के मुस्लिम युग में एवं उसके बाद १५वीं से १७वी सदी में भी मानभूम में विष्णुपुर घराने के कई मंदिर बनाए गए । ये हैं- चेलियामा का राधामाधव मंदिर, आचकोदा का टेराकोटा मंदिर, बेड़ो का जोड़बाग्ला मंदिर, बाघमुंडि का राधागोविन्द मंदिर, पंचरत्न शिव मंदिर, चाकलतोड़ के श्यामचाँद का जोड़ - बाग्ला शैली में बना मंदिर, गांगपुर का रघुनाथ मंदिर, आड़रा का मंदिर, लागदा का श्यामचाँद मंदिर, पंचकोट का रघुनाथ मंदिर आदि ।
पुरुलिया के प्राचीन ईंटों से बने देवालयों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि प्रत्येक देवालय लगभग ३ से ४ इंच ऊंची वेदी पर अधिष्ठित है । प्रवेश-मार्ग त्रिकोण आकार का है, जैसे पाड़ा के देवालय मंदिर के ऊपर एक से अधिक रथ या उपरथ देखने को मिलते हैं एवं वे देवालय के शीर्ष तक फैले हुये है । वर्गीय आकृति से बने गर्भ गृह की छत लहरा पद्धति से निर्मित की गई है । भीतर कोई दीप - स्थान नजर नहीं आता । लेकिन पत्थर देवालयों जैसा बाहर चार दीवारों पर जगह बनाए गये दिख जाते हैं, जहाँ सम्भवतः दीपक नहीं, देवी देवताओं की मूर्ति रखी जाती थी ।
देवालय के बाहर तीन अंश साफ साफ नजर आते है। निचला हिस्सा, जंघा और बर । देवालयों पर जो रथ या उपरथ देखने को मिलता है उनकी