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________________ जैनत्व जागरण..... २१९ These families call themselves 'Saraks' (a distortion of the word 'Shravak') or the Adi Jains. Arun Majhi, priest of the local Jain temple, believes that Lord Mahavira attained enlightnment on the banks of the nearby Ajoy river. Those who came in touch with him were called 'Shraveks.' He claims that the ruins of an entire city-dating back 1,400 years-lie buried under the village. ____ अरुण मांझी ने पत्र में जानकारी देते हुए लिखा है- "आदरणीय श्री राजेन्द्र जैन (इन्दौर से) यहाँ आये थे तथा पुचड़ा ग्राम के राजपाड़ा में स्थित प्राचीन जिन मन्दिर के अवशेष के स्थान पर यंत्र लगाकर निरीक्षण करके गये उन्होंने बताया कि राजपाड़ा के भू-गर्भ में तीर्थंकरों की कई स्वर्ण प्रतिमाएँ मौजूद है ।" ___ राजपाड़ा के संलग्न जमीन पर ४-५ फुट खुदाई पर बड़े-बड़े मकानों की बुनियाद मिलती है । आगे उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि "किसी को भी यहाँ आकर कोई असुविधा नहीं होती । गरीब परिस्थिति होते हुए भी हमारे घर में प्याज, लहसुन का प्रवेश निषेध है। आज से नहीं परम्परा से । मैं तो रात को भोजन भी नहीं लेता ।" इस पूरे अंचल में बिखरे पाषाण शिल्प के ये प्राचीन निदर्शन एक जीवन्त इतिहास के प्रामाणिक दस्तावेज हैं जो हमें हमारी प्राचीन संस्कृति की बहुमूल्य विरासत की छवि दिखा रहे हैं। चौबीस तीर्थंकरों में से बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि सम्मेत शिखर अति पवित्रं क्षेत्र माना जाता है । इसी के पार्श्ववर्ती अंचल में रहने वाले आदि जैन लोग धीरे-धीरे दामोदर कंसावती, द्वारिकेश्वर, शिलावती और बराकर के किनारे से होते हुए राढ़ बंग में फैल गये । इनके बनाये निदर्शन वर्द्धमान, बाकुड़ा, पुरुलिया मेदनीपुर जिलों के नदी तटवर्ती अंचलों में आज ★ थेरेहिंतो गोदासेहितो कासवगुत्तेहिंतो इत्थणं गोदासगणे नामं गणे निग्गए तस्सणं इमाओ चत्तारी साहाओ एवमानिज्जंति तं जहा तामलित्तिया कोडीवरिसिआ, पौंडवद्धणिया, दासी खव्वडिया । (कल्पसूत्र स्थविरावली) अनुवादक ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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