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जैनत्व जागरण.......
॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्री जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा ॥
५. जैन धर्म की विश्व व्यापकता
जैन धर्म एक स्वतंत्र धर्म है । वह किसी से निकला हुआ पंथ नहीं है अपितु विश्व के सभी धर्मों का मूल स्त्रोत है । लोग भ्रान्तिवश जिसे हिन्दु धर्म के नाम से जानते - पहचानते हैं, वह वस्तुतः वैदिक धर्म है । हिन्दु धर्म नामक कोई भी धर्म इस विश्व में है नहीं क्योंकि हिन्दु एक संस्कृति है, सभ्यता है। हिन्दुस्तान की भूमि में बस रहे सभी वैष्णक, सीख, जैन आदि हिन्दुत्व सभ्यता के अंग है । जैन धर्म तथा वैदिक धर्म में मूल तत्त्वों का भेद है । जैनधर्म वैदिक धर्म नहीं है, इस निम्नलिखित भेद द्रष्टत्य
I
है ।
२०
१.
३.
४.
यह कुछ तफावतें जिससे पता चले जैनधर्म वैदिक धर्म नहीं है । जैन धर्म
वैदिक धर्म
भगवान के अवतार की
मान्यता
भगवान को खुशी भी होती
भी होता है ।
दुख
प्रभु को चढ़ाया हुआ भोग
प्रसाद के रूप में खा
सकते हो ।
जगत् को चलानेवाले व
. बनाने वाले भगवान् है
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सभी भगवान की स्त्री है ।
राम-सीता, शिव-पार्वती,
१. भगवान कभी अवतार नहीं लेते
वे सिद्धशिला पर विराजते है ।
भगवान कभी भी खुश - नाखुश
नहीं होते है । वे तो वीतरागी है।
प्रभु को चढ़ाया हुआ भोग
कभी भी हम नहीं खा सकते.
२.
३.
जगत् सहज रीत से था, है और रहेगा । भगवान नहीं चला व बना स
तीर्थंकर कभी स्त्री नहीं रखते । स्त्री राग का कारण है और