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जैनत्व जागरण.....
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दक्ष करने का कार्य जैनाचार्यों के विशिष्ट ज्ञान और पांडित्य को है । सराक जाति शिल्पकार थी । इनको शिल्प में प्रवीणता देने का कार्य जैन आचार्यों का था । नालन्दा विश्व विद्यालय के कार्य कलापों को देखने से इस बात की पुष्टि होती है कि वहाँ धातु प्रयोग की कला का अध्ययन जैनाचार्यों की देखरेख में होता था क्योंकि जैनाचार्य तत्वज्ञानी होते थे । वस्तु तत्व को जानते थे । प्रत्येक वस्तु के गुण और धर्म के विषय में उच्च कोटि का ज्ञानवान ही वस्तु के सही उपयोग का विधिकारक बन सकता है । जैसे लोहे के तत्व या गुण धर्म को जानने वाला ही उसके विभिन्न उपयोग की विधि को प्रयोग कर निकाल सकता है। इसी को हम तकनीक कहते हैं जिसे अंग्रेजों ने Technology कहा है । अशोक का लौह स्तम्भ जिसे देखकर आज भी लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं इनकी लौह तकनीक की दक्षता का प्रत्यक्ष प्रतीक है ।
यूनानी इतिहासकारों ने जिनमें मेगस्थनीज प्रमुख है बिहार और बंगाल के शक्तिशाली साम्राज्यों का वर्णन किया है । The Greek historians suggest that Alexander retreated fearing valiant attacks of the mighty Gangaridai and Prasioi empires which were located in the Bengal region. Alexander's Historians refer to Gangardai as a people who lived in the lower Ganges and its tributaries.
He describes Gangaridai as a nation beyond the Ganges, whose king had 4 thousand war trained and equipped elephants. Later Periplus and Ptolemy also indicate that Bengal was organised into a powerful kingdom at the onset of the first millennium A.D. यहा एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि किस संपदा के बल पर बंगाल और बिहार ने प्राचीन काल में भारतवर्ष में साम्राज्य स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । ___ मगध के दक्षिण पूर्वी इलाके का मानभूम अंचल आज मल्लभूमि कहलाता है । यहा के राजा एवं सामन्तगण स्वयं को मल्लवंशी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं । ऐसा माना जाता है कि मानभूम, बाकुड़ा, सिंहभूम,