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________________ जैनत्व जागरण...... १९५ रक्षा में सदा संघर्षशील रही है एवं ये सराक जाति भारतवर्ष के वर्तमान जैनों के उत्तर पुरुष भी है । भारत के और भी किसी प्रान्त में इतनी प्राचीन जैन जाति निवास करती भी है या नहीं इसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता ।" सिन्धु सभ्यता का प्रभाव : बंगाल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्ययन सराक जाति का है जो यहाँ सिन्धु घाटी सभ्यता के अन्तिम चरण में आयी और जिसने यहाँ के सांस्कृतिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । इतिहासकारों के अनुसार यह प्रामाणिक तौर पर स्पष्ट हो चुका है कि लगभग ४००० वर्ष पूर्व बौंग नामक जाति सिन्धु घाटी से यहाँ आकर बसी । हड़प्पा, मोहनजोदड़ो से मिली कायोत्सर्ग मूर्तियाँ और कुछ सीले श्रमण संस्कृति की ओर स्पष्ट इंगित करती है । स्वर्गीय राय बहादुर प्रो. रमाप्रसाद चंदा ने अपने शोधपूर्ण लेख में लिखा है कि- "सिंधु मुहरों में से कुछ मुहरों पर उत्कीर्ण देवमूर्तियां न केवल योग मुद्रा में अवस्थित हैं वरन् उस प्राचीन युग में सिंधु घाटी में प्रचलित योग पर प्रकाश डालती हैं । उन मुहरों में खड़े हुए देवता योग की खड़ी मुद्रा भी प्रकट करते हैं और यह भी कि कायोत्सर्ग मुद्रा आश्चर्यजनक रूप से जैन धर्म से संबंधित है । यह मुद्रा बैठकर ध्यान करने की न होकर खड़े होकर ध्यान करने की है । आदि पुराण के सर्ग अठारह में ऋषभ अथवा वृषभ की तपस्या के सिलसिले में कायोत्सर्ग मुद्रा का वर्णन किया गया है। मथुरा के कर्जन पुरातत्व संग्रहालय में एक शिला फलक पर जैन ऋषभ की कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी हुई चार प्रतिमाएं मिलती हैं, जो ईसा की द्वितीय शताब्दी की निश्चित की गई हर् । मथुरा की यह मुद्रा मूर्ति संख्या १२ में प्रतिबिंबित है ।" ( मार्डन रिव्यु अगस्त १९३२ पृ. १५६-६०) प्रो. चंद्रा के इन विचारों का समर्थन प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार भी करते हैं । वे भी सिंधु घाटी में मिली इन कायोत्सर्ग प्रतिमाओं को ऋषभदेव की मानते हैं, उन्होंने तो सील क्रमांक ४४९ पर 'जिनेश्वर' शब्द भी पढ़ा
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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