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________________ जैनत्व जागरण....... प्रामाणिक इतिहास पर यह शोध लेख देने का प्रमुख कारण यही है कि हम अपने प्राचीन इतिहास से अवगत हो और हमें गर्व होना चाहिए कि हमने एक ऐसी संस्कृति में जन्म लिया जो मानव इतिहास एवं सभ्यता की जननी कही जा सकती है । कैसे थे वे लोग ? कैसा था उनका अथाह आत्मज्ञान ?, हम सोच भी नहीं पाते क्योंकि हमारी दृष्टि संकुचित होती जा रही है । मैं मेरे में ही उलझकर अपने तक ही सीमित बन गए हैं । इस मैं- मेरे को छोड़कर सर्वदर्शी, दूरदर्शी बनना होगा, तभी मानव जाति का उत्थान संभव होगा । I १९२ wwwwww
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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