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________________ १८२ जैनत्व जागरण....... सराकों के लौकिक आचार अनुष्ठान स्त्री जाति की विशिष्टता सराक परिवार की महिलाएँ विवाह के बाद हमेशा साडी पहनती है। जब तक शादी नही होती है तब तक सलवार कमीज, स्कर्ट फ्रॉक एवं कोई कोई साडी भी पहनती है । विवाह के बाद साडी पहनने का आशय यह भी है, कि मातृ एवं पितृ पक्ष के कुटुम्बी सिवा दूसरों के सामने माथा पर घुघंट रखने का सौभाग्य के साक्षीरुप पति के आमरण पर्यन्त सराक स्त्रियाँ माथे पर सिंदूर लगाती है। वे चप्पल जूते शादी होनेके बांद कभी. नही पहनती। संभवतः सराकसमाज में स्त्रियों को जूता-चप्पल पहननेका रिवाज नहीं था। आज कुछ शिक्षित महिलाएँ बाहर गांव या मेले, बाज़ार में जाते समय जूता-चप्पल पहनने लगी है, मगर अति सामान्य । कुमारिकाएँ शादी के पहले मांग नही सजाती यानि मांथे के बीज सीती नही काटती, बाए या दांए सीती काटकर अपनी कुमारिका की पहचान करवाती है । सराक समाज में विधवा विवाह का प्रचलन नही है आज भी M.C. (मासिक) धर्मका पालने की प्रथा सराकों के घर में पाई जाती है । पुरुष जाति का वैशिष्ट्यता : धोती-पायजा मा-पेन्ट - कमीज वर्तमान के परिधानीय वस्त्र है । ५० वर्ष पीछे जायेंगे तो कहना पडेगा कि परिधानीयं वस्त्र रुपे पुरुषो के परिधानीय वस्त्र धोती, जामा और सलवार कमीज थे, माथे टोपी पघडी पहनना पडत है । प्रायः गुजरातीओं की तरह वेशभूषा है । विवाह बंधनका नीति नियम विवाहका संबंध तय करते पहले वर एवं कन्या उभय पक्ष के वंश का विचार करते है । उभय पक्ष का गौत्र सम हो जो तो शादी नही होती है । सराक समाज के अन्दर गोष्ठी प्रथा भी है । पूर्व के बुजुर्गों ने अमुक वंशके लोगों की अमुक गोष्ठीकी आख्या देकर गौष्ठी निर्माण किया था 1 गौष्ठी प्रथामें उच्चनीच और सम का विचार करके शादी का अनुष्ठान रचाते I
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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