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४. जागो रे जैन संघ !
जैनत्व जागरण....
साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका, सब जिनशासन के अंग ।
समय आया अब जैनत्व जागरण का
जागो रे जैन संघ ॥
प्रभु के इस शासन में सम्यक्त्व दान महादान कहा गया है । सराक जाति हमारे लिए साधर्मिक बंधुवत् है । उन्हें पुन: जैन धर्म की स्मृति कराके जैन धर्म में स्थिर करने से न केवल जिनशासन का विस्तार होगा, बल्कि सराक भाई सम्यक्त्व के पथ पर आएँगे तथा जैनधर्म पुनः गौरवपूर्ण स्थिति पर आरुढ़ होगा। सराक जाति के पुनरुद्धार का कार्य कठिन है, किन्तु असंभव नहीं है। तीर्थंकरों व पूर्वाचार्यो की साक्षी से अब हम सभी को एक योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ना है । जब इसी मंगल भावनाओं के साथ हम सभी जैनत्व जागरण के पथ पर बढ़ेंगे तब निश्चित ही दैवीय शक्तियाँ इस अनुपम कार्य में सहयोग करेंगी एवं एक नए स्वर्णयुग का अध्याय प्रारम्भ होगा जो आगे आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनेगा ।
यह समय की पुकार है कि जैन संघ का प्रत्येक व्यक्ति इस दिशा में एक कदम बढाए ताकि संयुक्त रुप से हम लाखों कदम आगे बढ़ें । आचार्यादि पदस्थ - अपदस्थ साधु-साध्वी वृंद से निवेदन
एक आचार्य को १५-२० सराक क्षेत्रों का कार्यभार सोंपा जाए एवं वे अपने आज्ञानुवर्ती साधु-साध्वी जी को इस क्षेत्र में विचरण हेतु भेजें। भले चातुर्मास सम्मेद शिखर, पावापुरी, कलकत्ता, पटना, राजगीर, धनबाद, कटक, सरकेला, भुवनेश्वर जरीया आदि बड़े क्षेत्र में हो, किन्तु शेषकाल (८ महीने) का सम्पूर्ण विचरण सराक क्षेत्रों में हो ।