________________
१६६
जैनत्व जागरण.....
११. सराक जाति का रहस्य इतिहासकी आलोचना करने पर समझमें आया है कि तीर्थंकरके परम्परागत श्रावक आज भी मौजूद है। जो सराक जाति के नामसे पहचाने जाते है। यह जाति पुरूलिया जिले (बंगाल) के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में लाखों की संख्या में वास करते है...।
सराक जाति के विषय में अभी तक कोई भी ग्रन्थ सुशृंखल पद्धति से प्रगट नहीं किया गया है। आज भी बहुतों को पता नही है कि मानभूम इलाकेमें एक दिन जिन लोगों ने आर्यसभ्यता की आलोक-वर्तिका को वहन . कर लाई थी वह यह “सराक" सम्प्रदाय है ।
प्रसंगत : उल्लेखनीय है E.T. Dalton ने भी अपनी स्मरणिका में सराक समाज के प्राचीन अस्तित्व की बात की है । Dalton की भाषामें ये लोग मानभूम जिले के प्रथम आर्य वंश के आदि पुरस्कर्ता हैं ।
".....and another held by the people who have left many monuments of their ingenuity and piety in the adjoining district of Manbhum and who were certainly the earliest Aryan settlers in This Part of India Sarawaks of Jains...”
तथ्य-(Dalton, Edward Tuite :- Descriptive Ethnology of Bengal Cal. 1872 P.P. 416-417)
___ सराक जाति के लोग एक जैन धर्मावलम्बी जरूर थे, मगर वर्तमान में वे अपने आपको हिन्दु कहकर परिचय देते है। हिन्दुस्थान की मूल प्रजा सब हिन्दू है, भले वे वैष्णव सम्प्रदाय भक्त है या जैन, सिक्ख, बुद्ध या
ओर कोई भी सम्प्रदाय पालक हो । धार्मिक भावना सबकी अलग-अलग होने से संस्कृति और आचार संहिता सबकी अलग अलग सी नजर आती है आखिर तो सभी हिन्दू ही है, क्योंकि हिन्दुत्व धर्म नहीं हैं, सभ्यता है। जाति प्रथा के कारण खानपान एवं परिवेशमें भिन्नता दिखाई पडती है । मगर राष्ट्रीय भावना सबकी एक है, और वह है हिन्दुत्व की भावना वर्तमान सराकों के पास जो संस्कृति टिकी हुई है, वह संस्कृति मिश्र संस्कृति है।