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जैनत्व जागरण.....
जान सकते हैं कि उस समय पौंड्रवर्धन-भक्ति में (अर्थात् उत्तर बंगाल में) ब्राह्मण लोग अग्निहोत्र पंचमहायज्ञ-प्रभृति वैदिक क्रिया कर्म करते थे। इस वैदिक ब्राह्मण धर्म ने बंगाल में किस समय प्रवेश किया इस विषय की आलोचना करने की आवश्यकता है ।
हम भागवत, शैव आदि पौराणिक धर्मो की संक्षिप्त आलोचना कर चुके हैं। अब आगे चले । ईसा की पूर्ववर्ती कई शताब्दियों से ही बंगाल वाले छोड़े हुए बालों का आकार है ।
परन्तु दिगम्बरों की मान्यता ऐसी नहीं है । उनका कहना है कि ऋषभनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त सब तीर्थंकरो ने पंचमुष्टि लोच की थी। किसी भी तीर्थंकर के सिर पर बिलकुल बाल नहीं थे । उसका वर्णन इस प्रकार है :
ततः पूर्वमुखं स्थित्वा कृतसिद्ध नमस्क्रियः । केशानहुँचदाबद्ध पल्यङ्कः पंचमुष्टिकम् ॥ निलुच्य बहुमोहाग्रवल्लरी: केशवल्लरी: । जातरू पधरो धीरो जैनी दीक्षामनुषाददे ।
(दिगम्बर जिनसेनाचार्य कृत महापुराणं-पर्व १७ श्लोक २००-२०१)
अर्थात् - "तदनन्तर भगवान् (ऋषभदेव) पूर्व दिशा की ओर मुंह कर पद्मासन से विराजमान हए और उन्होंने पंचमष्टि केशलोच किया । धीर भगवान् ने मोहनीय कर्म की मुख्यलताओं के समान बहुत सी केश रूपी लताओं को लोचकर यथाजात अवस्था को धारण कर जिन दीक्षा ग्रहण की।"
हम लिख चुके हैं कि श्वेतांबर जैनों को तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियां वैसे ही मान्य है जैसे के कि अनग्न मूर्तियां इस की पुष्टि के लिए एक प्रमाण ओर देते हैं। श्री कल्पसूत्र में वर्णन है कि :___"प्रथमांतिम जिनयोः शक्रोपनीतं देवदूष्यापगमे सर्वदा अचेलकतवम्।" (कल्पसूत्र सुबोधिका व्या. १ पृ. १)
चतुविंशतेरपि तेषां (जिनानां) देवेन्द्रोपनीतं देवदूष्यापगमे तदभावादेव अचेलतत्वम् ।" (कल्पसूत्र किरणावली व्या० १ पृ. १)