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________________ जैनत्व जागरण..... १५३ के सम्मति शाखा के अनुयायी थे। भिन्न भिन्न देवोपासक संप्रदायों के मंदिर प्रायः पचास की संख्या में थे । कर्ण सुवर्ण नगर के निकट में ही "रक्तमृतिका" नामक एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध बौद्ध संघाराम था तथा इसी संघाराम के निकट कई स्तूप थे । चीनी यात्री के मतानुसार इन सब स्थानों में बुद्धदेव ने धर्म प्रचार किया था । एवं उसके बाद सम्राट अशोक ने प्रत्येक स्थान पर एक एक करके स्तूप निर्माण करवाये थे । ११. ओड्र - (उड़ीसा) कर्ण सुवर्ण से यात्री ओड्र देश में गया वहां पर एक सौ से अधिक बौद्ध संघाराम थे एवं दस हजार महायान पंथी. भिक्षु थे । मन्दिरों की संख्या उसने पचास लिखी है । इस के सिवाए जिसजिस स्थान पर बुद्ध देव ने धर्मप्रचार किया था उन सब स्थानों पर दस अशोक स्तूप भी अवस्थित थे । १२. कंगोद (गंजाम जिल्ला) वहां के सभी निवासी देवोपासक थे । इस देश में बौद्ध एवं बौद्ध संघाराम नहीं थे। देवमंदिर एक सौ से अधिक थे। . १३. कलिंग - (उड़ीसा के दक्षिण) यहां बौद्धों की संख्या बहुत ही कम थी । यहां पर यात्री ने केवल इस संघाराम और पांच सौ महायान पंथी भिक्षु देखे थे। अबौद्ध ही अत्यधिक संख्या में थे । इन में भी निग्रंथों की संख्या ही सब से अधिक थी । देवमंदिरों एक सौ की संख्या में थे। धर्म संप्रदायों के इस संक्षिप्त विवरण से स्पष्टतया ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रथम भाग में पूर्व भारतवर्ष (तथा बंगाल) में पौराणिक हिन्दू, बौद्ध और जैन तीनों संप्रदायों का एक समान प्रचार था । उस समय बंगाल प्रांत या बंगदेश में बौद्धधर्म की केवल दो शाखाएं अर्थात् हीनयान एवं महायान विद्यमान थी। यह बात चीनी यात्री के विवरण से स्पष्ट ज्ञात होती है। किन्तु ऐसा अनुमान होता है कि उस समय बंगाल देश में बौद्धधर्म धीरे-धीरे क्षीण अवस्था को प्राप्त होता जा रहा था। क्योंकि डूंसांग ने स्वयं ही लिखा है कि किसी किसी स्थान पर (यथा वैशाली
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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