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जैनत्व जागरण.....
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परन्तु निग्रंथो* (अर्थात् जैन धर्मावलम्बियों) की संख्या ही सब से अधिक थी।
पौड्रवर्धन नगर से कुछ दूर पर एक स्तूप था गुंसांग ने लिखा है कि यह स्तूप अशोक ने निर्माण करवाया था एवं भगवान तथागत बुद्ध ने इस स्थान पर तीन मास निवास कर धर्म प्रचार किया था ।
७. कामरूप - (आसाम के अन्तर्गत गुवाहाटी प्रदेश) चीनी यात्री पौंड्रवर्धन से पूर्व की यात्रा कर एक बड़ी नदी (करतोया) को पार कर कामरूप राज्य में पहुँचा । उस ने लिखा है कि "कामरूप के निवासी सभी देवोपासक हैं । कामरूप में बौद्धधर्म का प्रचार कभी भी न हो सका तथा कामरूप में एक भी बौद्ध संघाराम नहीं बना । जो बौद्धलोग कामरूप में निवास करते थे वे लोग गुप्त रीति से धर्मोपासना करते थे।" किन्तु ब्राह्मण धर्म के प्रत्येक संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या अत्यधिक थी और देवमंदिर भी सैंकड़ों की संख्या में थे । जैनधर्म सम्बंधी इस ने कुछ भी उल्लेख नहीं किया। संभवतः बौद्धधर्म के समान जैनधर्म का भी उस समय तक कामरूप में प्रचार न हुआ हो ।
८. समतट - (श्रीहट्ट-आधुनिक सिलहेट-त्रिपुरा आदि प्रदेश) कामरूप से दक्षिण दिशा की यात्रा करने के बाद गुंसांग समतट में आया । यहां पर बौद्ध तथा अंबौद्ध उभय संप्रदायों को मानने वाले लोग वास करते थे। तीस से अधिक बौद्ध संघाराम थे एवं उन में प्रायः दो हजार भिक्षु वास करते थे। ये सब भिक्षु स्थविर संप्रदाय के अनुयायी थे। भिन्न भिन्न संप्रदायों के प्रायः एक सौ देवमंदिर थे किन्तु निग्रंथों की संख्या ही सब से अधिक थी।
समतट की राजधानी (कर्मांत, कुमिला के निकटवर्ती वड़कामता) के समीप एक स्तूप था । गुंसांग के मतानुसार उसके सम्राट
श्वेतांबर जैन तीर्थंकरों की पंचकल्याणक वाली मूर्तियाँ भी मानते हैं । इन मूर्तियों में तीर्थंकर के १. च्यवन (गर्भ) कल्याणक के चिह्न रूप गर्भ अवस्था में इन की माता को आने वाले स्वप्न अंकित होते हैं । २. जन्म कल्याणक रूप अभिषेक कराने के चिह्न अंकित होते हैं । ३. दीक्षा कल्याणक रूप मूर्ति में केश लुंचन वाली तीर्थंकर की मुद्रा होती है । ४. केवलज्ञान