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________________ जैनत्व जागरण..... भारतीय सैनिक शक्ति का दुर्ग समझे जाने वाले मगध साम्राज्य के निकट बढ़ने का साहस वह न कर सका । उसे झेलम और चेनाब के नीचे के छोटे से प्रदेश के शासक पोरस के विरुद्ध जिस प्रकार लोहा लेना पड़ा और उसके लिए जो प्रयत्न करने पड़े, उसको देखते हुए इस बात की सम्भावना नहीं जान पड़ती कि शक्तिशाली नन्द साम्राज्य को पराजित करना उसके लिए सरल होता। इन सभी बातों को देखते हुए यवन सभ्यता की चकाचौंध से चकित न होनेवाला कोई भी आधुनिक इतिहासकार इस बात के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता यदि वह यह समझे कि यवन लेखकों में से अधिकांश ने जो सिकन्दर की वापसी का कारण उसके सैनिकों के आगे बढ़ने की अनिच्छा को ही माना है वह एकमात्र कारण न था और न वह उन प्राचीन यवन लेखकों के इस कथन की ही मनगढन्त कहकर उपेक्षा कर सकता है कि सिकन्दर के लौटने का कारण नन्दों की अपरिमित शक्ति का आतंक था । (हीरालाल दूगड़) इस समय तक पूर्वी राज्यों की शक्ति और गौरव का प्रभाव पूरे भारत में स्थापित हो चुका था। चंद्रगुप्त : यवनों की पराधीनता से देश को मुक्त करने का श्रेय एक स्वर से हम चंद्रगुप्त मौर्य को दे सकते हैं । इस वीर का आरम्भिक जीवन प्राय: पूर्णतः अज्ञात है, परन्तु उसने अपने परवर्ती जीवन में जो महान् सफलताएँ प्राप्त की, उसके कारण उसकी स्मृति असंख्य दंतकथाओं में सुरक्षित है। बाद के ब्राह्मण-ग्रन्थों में जो संकलित वेदों से प्रभावित ब्राह्मणों के मस्तिष्क की उपज लगते हैं, उसमें उसे मगध के नन्द शासक की एक नीचकुलोत्पन्न मुरा नामक स्त्री से उत्पन्न कहा गया है और यह माना गया है कि उस मुरा के नाम पर ही वंश का नाम मौर्य पड़ा । तिथि की दृष्टि से इससे पूर्व के बौद्ध इतिवृत्तों में उसे क्षत्रिय माना गया है। महापरिनिब्वान सुत्त में उल्लेख है कि चन्द्रगुप्त पिप्पलीवन के मोरिय नामक क्षत्रिय-कुल में जन्मा था और मोरिय गणतंत्र का रहने वाला था। यह गणतंत्र गोरखपुर जिले में पड़ता है । महावीर के गणधरों में एक मौर्य पुत्र भी थे । मोरिय जाति में विद्या और वीरता दोनों ही विद्यमान थे ।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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