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________________ जैनत्व जागरण..... अटवी थी जिसमें कलि नामक पर्वत था और उसके नीचे कुण्ड नामक सरोवर था इस वन में भगवान पार्श्वनाथ छद्मस्थ अवस्था में विचरे थे और कलिकुण्ड तीर्थ की स्थापना हुई थी । चतरशीति महातीर्थ नाम संग्रह कल्प में श्री जिनप्रभसरि जी ने 'चम्पायां विश्वतिलकः श्री वासुपूज्य' लिखकर भगवान वासुपूज्य को विश्वतिलक नाम से संबोधित किया है एवं पार्श्वनाथ स्वामी के तीर्थों में 'चम्पायामशोक' लिखा है । __यतिवृषभ ने चंपा का नामोल्लेख 'तिलोयपण्णति' में किया है। छठी शताब्दी में पूज्यपाद ने 'निर्वाणभक्ति' में 'चम्पापुरे च वसुपूज्य सुतः सुधीमान् सिद्धि परामुपगतो गतराग बन्ध' लिखकर चम्पापुरी में प्रभुका निर्वाण बतलाया है । रविषेण के पद्मपुराण में 'श्रावस्त्यां संभव शुभं चम्पायां वासुपूज्यकं' लिखकर वासुपूज्य स्वामी का जन्म कल्याणक माना है। जिनसेन ने हरिवंशपुराण (सर्ग १९) में चम्पापुरी का वर्णन किया है___ इसी हरिवंश पुराण में आगे चलकर लिखा है कि वसुदेव ने चम्पापुर में वासुपूज्य जिनालय को वन्दन किया यहाँ बड़ा मानस्तंभ था, अष्टान्हिक उत्सव में चम्पा निवासी लोग वासुपूज्य प्रतिमा की पूजा करते थे । यतः चम्पायां रममाणस्य सहगन्धर्वसेनया ।। वसुदेवस्य संप्राप्तः फाल्गुनाष्टदिनोत्सव ॥१ जन्म निष्क्रमण ज्ञान निर्वाण प्राप्तितोऽर्हतः वासुपूज्यस्य पूज्यां तां चम्पा प्रापुः स्फुरद् गृहाम् ॥३ चम्पावासी जनः सर्वो निश्चक्राम सराजकः प्रतिमां वासुपूज्यस्य पूज्यां पूजयितुं बहिः ॥५ अजातशत्रु कोणिकं पुत्र उदायी के समय मगध का केन्द्र स्थल चम्पा से पाटलीपुत्र में स्थित हो गया । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने परिशिष्ट पर्व ६.३४ में लिखा है कि उदायी ने पाटलीपुत्र के केन्द्र में एक जिन मंदिर का निर्माण किया । उदायी के बाद हर्यकवंश का अन्त हो गया और शिशुनाग
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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