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________________ =अकबर प्रतिबोधक कोन ?== भानुचंद्रजी उपाध्याय का ही मार्गदर्शन था। उन्होंने पुत्री की हत्या का पाप करने के बदले परमात्मा की अष्टोत्तरी पूजन पढ़ाने की सलाह दी। तब अकबर ने यह कार्य कर्मचंद्र मंत्री को सौंपा और मंत्रीजी स्वयं खरतरगच्छीय श्रावक थे, अतः स्वाभाविक था कि वह अपने गुरु भगवंतों के पास ही यह कार्य करवायेंगे। अतः आ. जिनसिंहसूरिजी ने अष्टोत्तरी स्नात्र पढायी एवं शासन की महिमा बढ़ी। इस पुरी घटना का उल्लेख 'हीरसूरि नो रास' में मिलती है, उसमें मानसिंहजी का उल्लेख भी दिया है। परंतु खेद की बात है कि 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' के पृष्ठ 85 में अगरचंदजी नाहटा ने 'अकबर ने अबुलफजल आदि की सलाह ली' ऐसा बताया, परंतु जिन जैन साधु भगवंत (उपा. भानुचंद्रजी) की सलाह से यह जैन धार्मिक अनुष्ठान हुआ, उसका उल्लेख तक नहीं किया। PP सच्चाई छुपाने से सावधान पुस्तक के निकाले हुए पोईंट जो मध्य एशिया और पंजाब में जैन क्रमांक क्र. धर्म पुस्तक में छपे हुए हैं। 1. पृ.-296 में 48-49-50 पोईंट निकाले। 1. पृ.-196 में छपे हुए हैं। 2. प.-298 में 67-68 पोईंट आ. हीरसरि म.सा.संबंधी। 2. पृ.-198 में छपे हुए हैं। 3. पृ.-299 'ईसा पर जैन धर्म का प्रभाव' के पूर्व 3. पृ.-200 में छपे हुए हैं। पू. बुटेरायजी, पू. आत्मारामजी का पंजाब पर किये गये उपकार के मेटर को उडाया। 4. पृ.-308 ‘अकबर का पूर्व जन्म' के पूर्व 'अकबर की जिनपूजा' मेटर | 4. पृ.- 238 में छपे हुए हैं। छिपाया। 5. पृ.-336 इस पृष्ठ में मूल पुस्तक पृ 282-290 तक में आ. | 5. पृ- 282 से 290 में छपे हुए हैं। भावदेवसूरिजी, आ. हीरसूरि म. का प्रभाविक चारित्र छोड़ | दिया, आगे आ. श्री हीरसूरि म. का विस्तृत चरित्र है, उसमें से अंश भर भी नहीं लिया। आ. जिनचंद्रसूरिजी का ले लिया। 6. पृ.-339 'श्वेतांबर जैनों'.... के पूर्व का आ. हीरसूरि म. का विवरण | 6. पृ-293 में छपे हुए हैं। उडाया जिससे आगे संबंध भी नहीं बैठता। 7. पृ-340 कलम 10-11 उडायी आ. सेनसूरि, आ. हीरसूरि के | 7. पृ- 294 में छपे हुए हैं। संबंधित। 8. पृ-340 अकबर द्वारा जैन मुनियों को पवियाँ-उडाया | 8. पृ- 294-295में छपे हुए हैं। 9. पृ.-341 ‘इससे सिद्ध होता है कि' आ. हीरसूरि वाला - उडाया। | 9. पृ- 296 में छपे हुए हैं। 10. पृ.-342 ‘बादशाह जैनी हो गया है' के बाद यह बात प्रवाद मात्र...' से | 10. पृ-297-298 में छपे हुए हैं। _ 'दीर्घायु के कारण है।' तक का मेटर उड़ा दिया। 11. पृ.-343 ‘अकबर के विषय'.... इसके पूर्व के 8 पेज आ. हीरसूरि म. ' 11. पृ-299 से 307 तक में छपे हुए हैं। वगेरे के गुणगान छोड़ दिये। प्रायः तपागच्छ संबंधी मेटर कट करके 'सच्चाई छपाने से सावधान' में छपे हए हैं जो मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' में से कोपी ट कोपी है। पृ.-68 से 163 तक । पृ.-1 से 70 तक पृ.-168 से 317 तक | पृ.-93 से 256 तक पृ.-318 से 347 तक | पृ.-260 से 315 तक पृ.-348 से 376 तक पृ.-320 से 341 तक (52)
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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