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अकबर प्रतिबोधक कोन ?:
हीरविजयसूरिजी, शांतिचंद्र उपाध्यायजी को रखकर गये । उन्होंने वि. सं. 1645 तक रहकर अमृतमय उपदेश देकर के अकबर के पास से जीवदया पालन के लगभग 6 माहिने और 6 दिन तक के कुल फरमान निकलवाये एवं गुर्वादेश से उपाध्याय श्री भानुचंद्रजी एवं श्री सिद्धिचंद्रजी ने भी 23 साल तक मुगल राजाओं के पास रहकर शासन के कार्य करवाये थे।
खरतरगच्छ के आचार्य जिनचंद्रसूरिजी ने भी आ. हीरविजयसूरिजी द्वारा खुले किये मार्ग के सहारे, वि. सं. 1649 में अमारि का अष्टाह्निका फरमान ( आषाढ सुद 9 से आ. सु. पूर्णिमा तक ) 7 दिन का मुलतान आदि के 12 सूबों के नाम से निकलवाया था। एवं आ. श्री जिनसिंहसूरिजी ने वि. सं. 1660 में मुलतान संबंधी उक्त फरमान के खो जाने पर पुनः नया फरमान प्राप्त क्रिया था । दोनों आचार्यों ने अकबर के पास अन्य शुभकार्य भी करवाये होंगे, परंतु उन्हें 7 दिन का एक ही फरमान मिला, ऐसा देखने में आता है। आ. जिनचंद्रसूरिजी के बाद, अकबर के दरबार में आ. विजयसेनसूरिजी उपस्थित हुए थे। अकबर की ओर से उन्हें भी एक फरमान मिला था।
इस प्रकार सर्वप्रथम वि. सं. 1639 में आ. श्री हीरविजयसूरिजी ने अकबर बादशाह को प्रतिबोध देकर तीर्थरक्षा, अमारि प्रवर्तन एवं प्रजा के हित के प्रति सक्रिय बनाया। इसी कार्य को बाद के आचार्यों ने आगे बढ़ाया था।
चलें ! ऐतिहासिक अन्वेषण करें !
इस प्राथमिक ऐतिहासिक निरीक्षण से ही स्पष्ट हो जाता है कि 'अकबर प्रतिबोधक', आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी थे। इसी बात को थोड़े विस्तार से एवं प्रमाणों के आधार से देखेंगे।
1. आ. हीरविजयसूरिजी द्वारा अकबर को प्रतिबोध देने के विषय में ‘युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' ग्रंथ (अगरचंदजी नाहटा ) में भी इस प्रकार बताया है:
'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' (प्रकरण छठा ) पृ. 64 :
सम्वत् 1639 में तपागच्छ के आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी भी सम्राट से मिले थे, उसके पश्चात् तो जैन विद्वानों का समागम उसे निरंतर रहा; जिससे जैन दर्शन के प्रति उनका अनुराग दिनों-दिन बढ़ने लगा था ।
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