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________________ =अकबर प्रतिबोधक कोन? अतीत का सिंहावलोकन अतीतकाल से बोध लेकर, भविष्य को लक्ष्य में रखते हुए वर्तमान को व्यतीत करना ही मानव जीवन है। इस त्रिकाल गोचर जीवन में अपना वर्तमान, भूतकाल का आभारी है। भूतकाल में हुए महापुरुषों के सत्पुरुषार्थ के प्रताप से ही वर्तमान में आत्मा को पवित्र करनेवाले, धर्म के शास्त्र, शास्त्र में बताई हुई क्रियाएँ; पवित्र जीवन जीते हए पवित्रता का संदेश देने वाला साधु-साध्वी भगवंतों का समुदाय, परमात्मा की कल्याणक भूमि आदि स्वरूप तीर्थक्षेत्र वगैरह आध्यात्मिक क्षेत्र की विरासतें मिली हैं। साथ ही सामाजिक जीवन में नैतिकता, सहृदयता वगैरह एवं प्रदेश की प्रजा में शांतिप्रियता, अहिंसकता वगैरह में पूर्व के महापुरुषों के सत्पुरुषार्थ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अतः भूतकाल में हुए इन उपकारी गुरु भगवंतों के उपकारों को याद करने एवं उनके प्रति भक्ति भाव रखने से जीवन में कृतज्ञता का गुण विकसित होता है। कहा गया है कि - कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः यानि जो उपकार को भूल जाये उसका निस्तार नहीं होता है। अतः वर्तमान की सुख-शांतिमय एवं धार्मिक जीवन रूपी इमारत की नींव रूप भूतकाल को पहचानना भी जरुरी होता है। इतिहास कहता है कि सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला भारत देश 8वीं शताब्दी तक प्रायः सुख, शांति, समृद्धि एवं धर्म प्रवृत्ति से परिपूर्ण था। परिवर्तनशील काल ने करवट बदली और पश्चिम देशों से पठाणों ने आक्रमण करके भारत को लुटना शुरु किया। धीरे-धीरे कुछ क्षेत्रों को जीतकर उनपर राज्य करने लगे। ‘इस्लाम धर्म स्वीकार करो वरना मरने के लिए तैयार हो जाओ' इस नीति से, तलवार की जोर पर आर्य संस्कृति एवं धर्म पर अत्याचार होने लगे। सेकड़ों लोग क्रूरतापूर्वक मारे गये। धन, मिल्कत एवं स्त्रियों की लूटें भी होती रहती थी। इतना ही नहीं परंतु भारतीय बिन-इस्लामी प्रजा पर धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव डालने रुप 'जजियावेरा' 'कर' 8 वीं शताब्दी में 'कासिम' ने चालु किया। जिसमें खाने-पीने के अतिरिक्त जो (मुनाफा) संपत्ति बचती वह सरकार ले जाती। दुसरे शब्दों में मरण तुल्य दंड, यह 'कर' था। इस 'कर' में कुछ परिवर्तन हुए परंतु आर्य प्रजा को इससे राहत नहीं मिली, वह त्रस्त थी। तीर्थयात्रा में भी 'कर' लिये जाते थे। मांसाहारी और मांसप्रिय शासकों के इस राज्यकाल में निर्दोष पशु ( 4
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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