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________________ आमुख श्रीमती डॉ. प्रीतम सिंघवीओ लखेलु प्रस्तुत पुस्तक 'समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद' अनेकान्तवाद विशे सामान्यपणे प्रवर्तती गेरसमजने दूर करे छे अने अनेकान्तवादना हार्दने प्रगट करे छे. वळी, लोकभोग्य शैलीमां लखायेलो अनेकान्तवाद विशेना हिन्दी पुस्तकों नहिवत् होई प्रस्तुत पुस्तक विशेष आवकार्य छे. उपरांत, व्यापक दृष्टिले पुस्तक लखायुं होई, सामान्य वाचकने पण तेमां अवश्य रस पडशे. प्रकरणोनी योजना अने विषयनिरूपणनी पद्धति पण तर्कयुक्त अने सरल छे. वस्तुमां अनेक धर्मो छे, पासां छे. सर्व धर्मो सहित अखंड वस्तुने ग्रहण करवी मनुष्यने माटे अशक्य छे. मनुष्य स्व अपेक्षा या प्रयोजनने अनुरूप ते ते धर्मने के पासाने ग्रहण करे छे, वस्तुने आंशिकपणे ग्रहण करे छ, समग्रपणे ग्रहण करतो नथी - करी शकतो नथी. तेनुं ज्ञान अने प्रतिपादन आंशिक सत्यने विषय करे छे, पूर्ण सत्यने विषय करतुं नथी. आ सभानताने ज अनेकान्तवाद प्रस्तुत करे छे तथा विविध दृष्टिओ के आंशिक सत्योनो समन्वय करवानो प्रयास करे छे. कोई पण धर्मने लई सावधानीपूर्वक प्रतिपादन करवानी पद्धतिने सप्तभंगी कहेवामां आवे छे. जुदी जुदी दृष्टिो-अपेक्षाओ ते धर्म विशे सात विधानो करी शकाय छे. आ सात विधानो ज सप्तभंगीना भंगो या अवयवो छे. पोताना आंशिक ज्ञानने पूर्ण मानी लेवानी भूलने कारणे ज वैचारिक असहिष्णुता अने परिणामे हिंसा जन्मे छे. आम अनेकान्तवाद वैचारिक सहिष्णुता, अहिंसा, शान्ति अने समन्वयनो पोषक छे. अनेकान्तवाद बहु उपयोगी छे. अनाथी मताग्रहना स्थाने वैचारिक उदारता अने दृष्टिनी संकुचितताना स्थाने दृष्टिनी विशालता आवे छे. भिन्न भिन्न व्यक्तिओना दृष्टिकोणोने समजवामां घणी सहायता मळे छे. जीवनना प्रत्येक क्षेत्रमा सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राष्ट्रीय आदिमां लाभप्रद छे. विरोधी विचारोनो समन्वय करनार छे. आ ज वस्तुनुं विस्तारथी प्रतिपादन प्रस्तुत ग्रंथमां थयु होई व्यक्ति अने समाजने लाभदायी विचारने वहन करतो ते पुरवार थशे अम लागे छे. ता. २-१०-९८ नगीन जी. शाह
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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