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पंचम प्रकरण वर्धमान महावीर का अनेकान्तवाद और गौतम बुद्ध का
विभज्यवाद -एक तुलना विभज्यवाद
सूत्रकृतांग में भिक्षु कैसी भाषाका प्रयोग करें, इस प्रश्न के प्रसंगमें कहा गया है कि विभज्यवाद का प्रयोग करना चाहिए। विभज्यवादका मतलब ठीक समझने में हमें जैन टीकाग्रन्थोंके अतिरिक्त बौद्ध .ग्रन्थ भी सहायक होते हैं । बौद्ध मज्झिमनिकाय (सुत्त. ९९) में शुभ माणवक के प्रश्नके उत्तरमें भ.बुद्धने कहा कि- "हे माणवक ! मैं यहाँ विभज्यवादी हूँ, एकांशवादी नहीं।" उसका प्रश्न था कि मैंने सुन रखा है कि गृहस्थ ही आराधक होता है, प्रव्रजित आराधक नहीं होता। इसमें आपकी क्या राय है? इस प्रश्न का एकांशी हाँ में या नहीं में उत्तर न देकर भगवान बुद्धने कहा कि गृहस्थ भी यदि मिथ्यात्वी है तो निर्वाणमार्गका आराधक नहीं और त्यागी भी यदि मिथ्यात्वी है तो वह भी आराधक नहीं । किन्तु यदि वे दोनों सम्यक् प्रतिपत्तिसम्पन्न है, तभी आराधक होते हैं। अपने ऐसे उत्तरके बल पर वे अपने आपको विभज्यवादी बताते हैं और कहते हैं कि मैं एकांशवादी नहीं हूँ।
___यदि वे ऐसा कहते कि गृहस्थ आराधक नहीं होता, त्यागी आराधक होता है या ऐसा कहते कि त्यागी आराधक होता है, गृहस्थ आराधक नहीं होता · तब उनका वहं उत्तर एकांशवाद होता । किन्तु प्रस्तुतमें उन्होंने त्यागी या
गृहस्थकी आराधकता और अनाराधकता बताया है। अर्थात् प्रश्नका उत्तर विभाग करके दिया है अतएव वे अपने आपको विभज्यवादी कहते हैं । ।
यहाँ पर यह ध्यान रखना चाहिए कि भगवान् बुद्ध सर्वदा सभी प्रश्नोंके उत्तरमें विभज्यवादी नहीं थे। किन्तु जिन प्रश्नों का उत्तर विभज्यवादसे ही संभव था उन कुछ ही प्रश्नोंका उत्तर देते समय ही वे विभज्यवादका अवलम्बन लेते
उपर्युक्त बौद्ध सूत्रसे एकांशवाद और विभज्यवादका परस्पर विरोध स्पष्ट सूचित हो जाता है । जैन टीकाकार विभज्यवाद का अर्थ स्याद्वाद अर्थात्