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अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक . ४३ मूल दृष्टि को उत्तरकाल के आचार्यों ने अपने युग की समस्याओं का समाधान करते हुए विकसित किया है।
कोई भी पदार्थ स्याद्वाद की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकता - "आदीपमाव्योम समस्वभावं स्याद्वादमुद्रानतिभेदि वस्तु" -अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका
अनेकान्तवाद का आधार न लिया जाए तो व्यावहारिक और दार्शनिक दोनों दृष्टियों से काफी उलझनें खड़ी हो जाती है। एक हाथी को देखने वाले सात अन्धों का दृष्टान्त स्याद्वाद के समर्थन के रूप में प्रसिद्ध है।
एक व्यक्ति कवि है, लेखक है, वक्ता है, कलाकार है, चित्रकार है, संगीतकार है, और भी न जाने क्या-क्या है । कविता-गोष्ठी में उसका कवि रूप सामने आता है उस समय उसकी दूसरी-दूसरी विशेषताएँ समाप्त नहीं हो जाती पर एक समय में एक विशेषता की ही चर्चा होती है। उसके लिए कोई यह कहे कि यह कवि ही है, इस कथन में सत्यता नहीं रहती । इसलिए स्याद्वाद को समझने वाला व्यक्ति कहेगा-स्याद् यह कवि है । एक अपेक्षा से यह कवि है किन्तु अन्य अपेक्षाओं से वक्ता, लेखक आदि भी है, जिनकी चर्चा का यहाँ प्रसंग नहीं है। वर्तमान में जे विशेषता चर्चा का विषय होती है, वह प्रधान बन जाती है और अन्य विशेषताएँ गौण हो जाती है। इस दृष्टि से स्याद् शब्द परिपूर्ण सत्य का वाचक बन जाता है। - अपूर्ण सत्य व्यक्ति के मन में भ्रम उत्पन्न कर देता है। उसके आधार पर वह सही या गलत का निर्णय नहीं कर पाता । एक वस्तु है और उसे जानने या देखने वाले अनेक हैं । सबके पास अपनी-अपनी दृष्टियाँ हैं । भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से समझी हुई वस्तु का स्वरूप एक समान नहीं हो सकता । एक हिमालय पर्वत के बारे में चार व्यक्तियों के भिन्नभिन्न धारणाओं के आधार पर आप इस तथ्य को अधिक स्पष्टता से समझ सकते हैं ।
चार पर्वतारोही हिमालय की एवरेस्ट चोटी पर पहुँचे । चारों व्यक्ति चार स्थानों में खडे थे । वहाँ से उन्होंने हिमालय पर्वत के चित्र लिये । चारों अपने-अपने चित्र लेकर लोगों से मिले। उन्होंने सबको चित्र दिखाए और कहा