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________________ २२ समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद यथा १. स्याद् नित्य एव घट: २. स्याद् अनित्य एव घट: ३. स्याद् नित्यानित्य एव घटः ४. स्याद् अवक्तव्य एव घट: ५. स्याद् नित्योऽअवक्तव्य एव घटः ६. स्याद् अनित्योऽअवक्तव्य एव घटः ७. स्याद् नित्यानित्य अवक्तव्य एव घटः किसी भी पदार्थ के विषय में उक्त सात प्रकार से ही प्रश्न हो सकते । अतः आठवां नवां या दशवां भङ्ग नहीं बन सकता । इसीलिए 'सप्तभङ्गी' में सप्त पद बिल्कुल सार्थक एवं अवधारणात्मक है, अर्थात् - सात. हीं भङ्ग हैं, कम या अधिक नहीं । उक्त सात वचन - प्रयोगों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है १. घट, द्रव्य - अपेक्षा से नित्य है । २. घट, पर्याय- अपेक्षा से अनित्य है । ३. घट, क्रम - विवक्षा से नित्य भी है और अनित्य भी । ४. घट, अवक्तव्य है, अर्थात् - युगपद् - विवक्ष से अवक्तव्य भी है । उक्त चार वंचन-प्रयोगों पर से पिछले तीन वचन और बनाए जाते हैं । -विवक्षा ५. द्रव्य - अपेक्षा से घट 'नित्य' होने के साथ साथ युगपद् - से 'अवक्तव्य' है । ६. पर्याय-अपेक्षा से घट 'अनित्य' होने के साथ-साथ युगपद-विवक्षा से अवक्तव्य है । ७. द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा से घट क्रमश: 'नित्य' और 'अनित्य' होने के साथ-साथ युगपद् - विवक्षा से अवक्तव्य है। पिछले तीन वचन-प्रयोग, अवक्तव्य रूप चतुर्थ अंग के साथ पहला, दूसरा और तीसरा मिलाने से बनते हैं । अतः वास्तव में मुख्य रूप से तीन ही भङ्ग हैं 1
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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