SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद इन्द्रियजन्य पदार्थ ही जाने जा सकते हैं, किन्तु केवलज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष है, इसलिये केवलज्ञान में भूत, भविष्य और वर्तमान सम्पूर्ण पदार्थ प्रतिभासित होते हैं । अतएव स्याद्वाद हमें केवल जैसे-तैसे अर्धसत्यों को ही पूर्णसत्य मान लेने के लिये बाध्य नहीं करता। किन्तु वह सत्य का दर्शन करने के लिये अनेक मार्गों की खोज करता है । स्याद्वाद का इतना ही कहना है, कि मनुष्य की शक्ति बहुत सीमित है, इसलिये वह आपेक्षिक सत्य को ही जान सकता है। पहले हमें व्यवहारिक विरोधों का समन्वय करके आपेक्षिक सत्य को प्राप्त करना चाहिये । आपेक्षिक सत्यके जानने के बाद हम पूर्णसत्य-केवलज्ञान-का. साक्षात्कार करने के अधिकारी हैं। सप्त-भंगी जैन-दर्शन में जितना महत्त्व स्याद्वाद का माना गया है, और बौद्धिक विश्लेषण के द्वारा पदार्थों का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए जैसा उपयोग स्याद्वाद का किया जाता है, उतना ही महत्त्व और उपयोग सप्तभंगी का भी माना गया है । 'सप्त-भंगी' वह महान् सिद्धान्त है, जो वस्तु के धर्म पर अवलम्बित रहता है। अस्तु, किसी प्रश्न के उत्तर में या तो हम 'हाँ' बोलते है या 'नहीं'। इसी 'हाँ' और 'नहीं' के औचित्य को लेकर सप्त-भंगीवाद की रचना हुई है। सप्त-भंगों का सामान्य अर्थ है- 'वचन के सात प्रकारों का एक समुदाय' । किसी भी पदार्थ के लिए अपेक्षा के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सात प्रकार से वचनों का प्रयोग किया जासकता है । वे सात वचन इस प्रकार हैं - २. नहीं है ३. है और नहीं है ४. कहा नहीं जा सकता ५. है, परन्तु कहा नहीं जा सकता ६. नहीं है, परन्तु कहा नहीं जा सकता . ७. है और नहीं है, परन्तु कहा नहीं जा सकता
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy