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इस वाद के विषय में विद्वानों में बहुत विचारभ्रम है, उसे दूर कर इसके यथार्थ स्वरूप को सबके सम्मुख प्रस्तुत करना आवश्यक है । अतः इस विषय पर ग्रन्थ लिखना उपयुक्त प्रतीत हुआ ।
'समन्वय, शान्ति और समतयोग का आधार अनेकान्तवाद' विषयक मेरे इस अध्ययन एवं चिंतन को मूर्त रूप प्रदान करने में जिन महापुरुषों विचारकों, दार्शनिकों, लेखकों, गुरुजनों एवं मित्रों का सहयोग रहा है उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनित कर्तव्य समझती हूँ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के लिये जिन-जिन पुस्तकों को पढ़ा, उनसे संदर्भ लिये और जिनकी प्रेरणा से मुझमें यह दृष्टिकोण आया, उन सबकी मैं हृदय से आभार . मानती हूँ।
ऋणस्वीकार उन गुरुजनों के प्रति, जिनके प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन ने मुझे इस कार्य में सहयोग दिया है, यहाँ श्रद्धा प्रकट करना भी मेरा अनिवार्य कर्तव्य है।
आदरणीय पंडितवर्य, आगमवेता, महामनीषी पद्मभूषण पं. दलसुखभाई मालवणिया व सौहार्द सौजन्य एवं संयम की मूर्ति श्रद्धेय डा. भायाणीजी हमेशा से मेरी प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, इसके लिये मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।
परम पूज्य आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी की प्रेरणा व सहयोग से. यह कार्य सम्पन्न हुआ, इसके लिये हृदय से उनका आभार मानती हूँ।
डा. नवीनभाई शाह की हृदय से कृतज्ञता का अनुभव करती हूँ, जिन्होंने अपने परिष्कृत दृष्टिकोण से आवश्यकतानुसार हर समय मार्गदर्शन किया। तथा प्रस्तुत पुस्तक का 'आमुख' लिखा उसके लिये मैं आभारी हूँ।
परमपूज्य आचार्यश्री विजय प्रद्युम्नसूरिजी की अत्यंत कृतज्ञ हूँ जिन्होंने अनेक कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी मेरी प्रार्थना पर प्रस्तुत ग्रंथ के लिये 'आशीर्वचन' लिख दिया इसके लिये हृदय से उनका आभार मानती हूँ।
मैं अपने स्व. पूज्य पिताश्री एवं माताश्री की भी आभारी हूँ जिनका आशीर्वाद सदा अव्यक्त रूप से मेरे साथ रहता है। उन्हींकी प्रेरणा से आज मैं