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________________ उपसंहार १०१ है । एक देश दूसरे देश से, एक वाद दूसरे वाद से, एक नीति दूसरी नीति से, एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से एकदम भिन्न नहीं है । यही भिन्नता की वृत्ति संघर्ष का मूल है । अपितु किसी दृष्टि से अभिन्न भी है। विश्व में कोई दो पदार्थ, दो वाद, दो व्यक्ति, दो समुदाय एकान्तिक रूप से एकदम भिन्न नहीं हो सकते । उनकी भिन्नता में भी कोई आधारभूत अभिन्नता अवश्य रहती है। इसी सनातन सत्य का प्रयोगात्मक रूप आंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में आया । हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम के विस्फोट के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ। तृतीय विश्वयुद्ध की प्रलयकारी विभीषिकाओं को सोचते हुये विश्व के समस्त राष्ट्रों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। आंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में यह महत्त्वपूर्ण अवसर था, जब पूँजीवादी और साम्यवादी जैसी विरोधी विचारधाराओं के राष्ट्रों ने एकसाथ बैठने का तथा विश्व साहचर्य के विकास का एक समान धरातल चुना। उग्र मतभेदों में भी क्रियात्मक साम्य का यह एक अद्वितीय संगठन है, उसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन तो इस बात से ही हो जाता है कि विश्व का प्रत्येक राष्ट्र उसका सदस्य बने रहने में ही अपना गौरव एवं सुरक्षितता समझाता है। यहीं बैठकर सभी राष्ट्र अपने विचार भेदों में समन्वय का मार्ग ढूंढने का प्रयत्न करते हैं । भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहरलाल नहेरु ने अहिंसा एवं अनेकान्त को अपनी निति में सदा महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका 'पंचशील' सिद्धान्त का निर्माण इस दिशा में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपलब्धि है। अनेकान्त की छाया में विकसित सह-अस्तित्व का सिद्धान्त विश्व शान्ति का सबसे सुगम उपाय एवं श्रेष्ठ पथ माना जा रहा है। इसको अपनाये बिना विश्व शान्ति असंभव है। सह-अस्तित्व का प्रयोजक, विभिन्न विभिन्न विचारधाराओं में भी एकता लाने वाला, विभिन्न विभिन्नताओं में समरसता उत्पन्न करने वाला अनेकान्त सिद्धान्त विश्व शान्ति के लिये अनिवार्य है। भारतीय संस्कृति के विशेषज्ञ मनीषी डॉ. रामधारीसिंह दिनकर का स्पष्ट अभिमत है कि "स्यादवाद का अनुसंधान भारत की अहिंसा-साधना का चरम उत्कर्ष है और सारा संसार इसे जितना शीघ्र अपनाएगा विश्व में शान्ति उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी। .
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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