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मंगल कामना
यही प्रार्थना वीर से, अनुनय से कर जोर । हरी भरी दिखती रहे, धरती चारों ओर ।।१।।
विषय कषाय तजो भजो, जरा निर्जरा धार । ध्याओ निज को तो मिले, अजरामर पद सार ।।२।।
सागर वो कचरा तजे, समझ उसे निस्सार । गलती करता क्यों भला, तू अघ को उर धार ।।३।।
रवि सम पर उपकार में, रहो विलीन सदैव । विश्व शान्ति वरना नहीं, यों कहते जिनदेव ।।४।।
रग-रग से करुणा झरे दुखीजनों को देख । चिर रिपु लख ना नयन में, चिता रुधिर की रेख ।।५।।
तन-मन-धन से तुम सभी, पर का दुःख निवार। शम-दम-यम युत हो सदा, निज में करो विहार ।।६।।
तरणि ज्ञानसागर गुरों ! तारो मुझे ऋषीश । करुणाकर ! करुणा करो, कर से दो आशीष ।।७।।
समय एवं स्थान परिचय
इक त्रि शून्य द्वय वर्ष की, भाद्रपदी सित तीज । लिखा गया अजमेर में भुक्ति-मुक्ति का बीज ।।८।।
नमूं ज्ञानसागर गुरु, 'मुझमें कुछ नहिं ज्ञान । त्रुटियां होवें यदि यहां, शोध पढ़ें धीमान ।।९।।
[इति शुभं भूयात्]