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________________ [१००] नीतेः प्रणेता शिवपन्थनेता, नीत्यै मया यः प्रणर्ति सुनीतः । धनाप्तये निर्धनिभिर्धनी किं, सेव्यो न वा पृच्छति नीतिरेषा ।। नीतेरिति यो नीतेः सदाचरणपद्धतेः प्रणेता रचयिता शिवपन्थनेता मोक्षमार्गनायकश्चास्ति स भवान् वीरो मयात्र लोके नीत्यै नीतिशतकपूर्त्यर्थं प्रणतिं नमस्कृति सुनीतः सुप्राधितः । निर्धनिभिर्धनरहितै र्जनैः किं धनाप्तये धनप्राप्त्यै धनी जनः सेव्यः सेवनीयो न भवति ? इति एषा नीतिः पृच्छति त्वामिति शेषः ।। १०० ।। अर्थ – जो नीति के रचयिता है तथा मोक्षमार्ग के नेता हैं ऐसे महावीर भगवान् को ही मैंने नीति – नीतिशतक की पूर्ति के लिये नमस्कार किया है। क्या निर्धन मनुष्यों के द्वारा धन प्राप्ति के लिये धनी पुरुष सेवनीय नहीं है ? यह नीति आप से पूछती है ।। १०० ।। -
SR No.002457
Book TitlePanchshati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar, Pannalal Sahityacharya
PublisherGyanganga
Publication Year1991
Total Pages370
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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