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________________ मंगल कामना समय - समय पर', समय में सविनय समता धार । सकल संग सम्बन्ध तज रम जा सुख पा सार ।। भव-भव भववन भ्रमित हो भ्रमता, भ्रमता काल । बीता अनन्त वीर्य बिन, बिन सुख, बिन वृष- सार ।। परपद, निजपद, जान तज, परपद, भज निज काम । परम पदारथ फल मिले पल-पल जप निज नाम ।। मोक्ष मार्ग पर तुम चलो दुख मिट सुख मिल जाय । परम सुगन्धित ज्ञान की मृदुल कली खिल जाय । । तन मिला तुम तप करो, करो कर्म का नाश । रवि - शशि से भी अधिक है तुममें दिव्य प्रकाश ।। विषय विषम-विष है सुनो, विष सेवन से मौत । विषय - कषाय विसार दो स्वानुभूति सुख स्रोत ।। C 'ही' से 'भी' की ओर ही बढ़ें सभी हम लोग । छह के आगे तीन हो विश्व शान्ति का योग ।। यही प्रार्थना'वीर' से अनुनय से कर जोर । हरी-भरी दिखती रहे धरती चारों ओर ।। (२७८)
SR No.002457
Book TitlePanchshati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar, Pannalal Sahityacharya
PublisherGyanganga
Publication Year1991
Total Pages370
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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