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नाममाला के अन्त में धनंजय ने तत्वार्थराजवार्तिककार' अकलंकदेव का उल्लेख 'प्रमाणमकलंकस्य श्लोक में किया। अकलंकदेव का समय ई. 7 वीं सदी निश्चित है, अतः धनंजय 7 वीं सदी के पूर्व के नहीं हो सकते। उपर्युक्त प्रमाणों के आधार से धनंजय महाकवि का काल 8 वीं सदी प्रमाणित/ सिद्ध होता है।
* जैनधर्म का प्राचीन इतिहास (भाग 2), लेखक- पं.परमानन्द शास्त्री, प्रका.-मेसर्स रमेशचन्द जैन, मोटरवाले, राजपुर रोड़, दिल्ली, प्रथम संस्करण, वीर निर्वाण संवत् 2500, पृष्ठ 1381 . ७ पी.एल.वैद्य, मयूरभंज प्रोफे. एवं अध्यक्ष-संस्कृत पाली विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा ‘सभाष्य नाममाला' का अंग्रेजी प्राक्कथन, पृष्ठ 5। * स्व. पं. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य द्वारा 'नाममाला-सभाष्य' की प्रस्तावना, पृष्ठ 12-13।
नाममाला (अमरकीर्ति के भाष्य सहित), संपा. पं. शम्भूनाथ त्रिपाठी, प्रका.- भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथमसंस्करण, वीर निर्वाण सं. 2476 प्रस्तावना, पृष्ठ 131 -द्विसंधानमहाकाव्य, प्रका, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम संस्करण ।
सभाष्य नाममाला- प्रस्तावना, पृष्ठ 13. शेप विवरण पूर्वोक्तवत्। + सभाष्य नाममाला, प्रस्तावना, पृष्ठ 12, शेष विवरण पूर्वोक्तवत्। * तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, लेखक-स्व. पं. नेमिचन्द शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, प्रका. श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विपरिषद, सागर, प्रथम संस्करण 2501, पृष्ठ 7। ७ जैनधर्म का प्राचीन इतिहास (भाग 2), लेखक-पं. परमानन्द शास्त्री, शेष विवरण पूर्वोक्तवत् पृष्ठ 1401 *जैनधर्म का प्राचीन इतिहास (भाग 2), पृष्ठ 1401 तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, पृष्ठ 7-8, शेप विवरण पूर्वोक्तवत् ।