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में चल रहा है तथा जबलपुर और सागर में ब्राहमी विद्याश्रम चल रहा है। इन सब संस्थाओं से जिनशासन की प्रभावना बढ़ रही है। आपके द्वारा इसी प्रकार धर्मप्रभावना होती रहे यह भावना
ऊपर निर्दिष्ट पांच शतकों का प्रकाशन "पंचशती" के नाम से हो रहा है। संस्कृत टीकाओं के लिखने में अशुद्धियों का होना संभव है अतः मैं उनके लिए आचार्यश्री तथा सुविज्ञ पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ। हाथों में कम्पन होने से मेरे द्वारा लिखी प्रेस कापी का पुनर्लेखन श्री ब्र. राकेश जी को करना पड़ा है जिसे उन्होंने स्वान्तःसुखाय स्वयं किया है तथा मुद्रण और प्रूफ संशोधन का कार्य पूर्ण मनोयोग के साथ किया है अतः उनका आभारी हूँ।
- इस पंचशती के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग श्री अजितप्रसाद, श्री करेशचन्द एवं श्री संजयकुमार दिल्ली वालों ने किया है अतः धन्यवाद के पात्र है। सम्प्रति उपलब्ध जैन विद्धानों में संस्कृत भाषा के गहन अध्ययन के प्रति अभिरुचि न देख मानसिक संताप को प्रकट करता हुआ आकांक्षा रखता हूँ कि पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी की जैन शिक्षा संस्थाओं को स्थापित करने में जो भावना थी उसे साकार करते रहें।
श्री वर्णी दिग. जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढिया, जबलपुर 30-9-1990 .
विनीत पन्नालाल साहित्याचार्य