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उक्सग्गहरस्तोत्रम् ॥
पार्श्वनाथस्वामि ( भवे भवे ) जन्म जन्ममें (बोहिं) जिनधर्मकी प्राप्ति ( दिज्झ ) देओ ॥ ५॥
(भावार्थ) हे त्रैलोक्यव्यापककीर्तमान् आपकी भक्तिके समूहसे प्रपूरित हृदयसे पूर्वोक्त प्रकार आपकी स्तुति करताहूं. इस हेतु हे सम्पूर्ण जिनोंमें चांदके समान पार्श्वप्रभु ! आप जन्मजन्ममें जिनधर्मप्राप्ति मुझे देओ ॥ ५॥
इति श्रीइन्दुरजैनश्वेताम्बरपाठशालामुख्याध्यापकचोबेकुलोद्भवश्रीगोपीनाथसून
पण्डितश्रीकृष्णशर्मकृतसुबोधिनीटीकासहितं
" उवसग्गहरस्तवन
ममातम् ।