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गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥
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( सूरि) सूरि ( जयइ ) कुतीर्थादि निराकरण द्वारा
विजयशाली होवें.
( यहां स्तोत्र कर्तानें अपना 'जिनदत्तसूरि ' यह नाम भी प्रकट कर दिया है. ) ( भावार्थ )
जिनसे श्रेष्ट सिद्धान्त निकला है ऐसे आचार्योंके मस्तक के मणिके समान, धारण करनेको अत्यन्तकठिन ऐसी क्षमावाले, तत्कालवर्ती आचार्यों में परमपूज्य, आचार तत्पर ऐसे अपने सद्गुरुओंका पूर्ण पारतन्त्र्य धारण करनेवाले, समस्त लक्ष्मी के संस्थान, नमस्कार करने वाले साधुओंमेंश्रेष्ट ऐसे जिनदत्तसूरि विजयशाली होवे ।
इति श्री इन्दुर जैन श्वेताम्बरपाठशालामुख्याध्यापकचोबे कुलोद्भव श्रीगोपीनाथ सूनु पण्डित श्रीकृष्ण शर्मकृतसुबोधिनीटीका सहितं
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गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रं " समाप्तम् ॥