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________________ ( २ ) धर्म से संतानवृद्धि । बालाण वो तुरियाण, हिंसणं बंदिविन्दनिग्योसो। गुरुओ मंथासद्दो, धन्नाण घरे समुच्छलइ ॥५॥ वरबालामुहकमलं, बालमुहं धूलिधूसरच्छायं । सामिमुहं सुपसनं, तिन्नि वि सग्गं विसेसति ।। ६ ।।. प्रस्थान समय यह मंगलिक के लीए होते है। कन्यागोपूर्णकुंभं दधिमधुकुसुमं पावकं दीप्यमानं । यानं वा गोप्रयुक्तं करिनृपतिरथः(थं) शंखवाद्यधनिर्वा ।। उत्क्षिप्ता चैव भूमी जलचरमिथुनं सिद्धमन्नं यतिवा । वेश्यास्त्रीमद्यमांसं जनयति सततं मंगलं प्रस्थितानां ॥७॥ श्रमणस्तुरगो राजा, मयूरः कुञ्जरो वृषः । प्रस्थाने वा प्रवेशे वा, सर्वसिद्धिकरा मताः ॥८॥ भोजराजा के लिये मंत्रीयों का विलाप । अद्य धारा निराधारा, निरालम्मा सरस्वती । पण्डिता रण्डिताः सर्वे, त्वयि भोज दिवं गते ॥ ६ ॥ दया रहित को दीक्षादि नक्कामी है । न सा दीक्षा न सा भिक्षा, न तदानं न तत्तपः । न तद्ध्यानं न तन्मौनं, दया यत्र न विद्यते ॥१०॥ योगीश्रेष्ठ स्थूलीभद्र अथवा सब से बडा दानी, मानी, भोगी और योगी यह है।
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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