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मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र.
मुनिराज श्री भावविजयजी पोताना शिष्य-समुदाय साथे पधारतां कराडना श्री संघे सारो सत्कार को. पोताना शहेरमां आवा वैरागी अने संयमशील मुनिवर्योनो लाभ मळवाथी कराडना श्री संघे वधारे स्थिरता करवा जणाव्युं, अने तेम न बनी शके तो छेवटे फागण चोमासा सुधी रोकावा विनति करी. परंतु गुरुदेव आचार्यजी महाराज श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराजे पोतानी भेगा थवानुं फरमावेलं होवाथी रोकाया नहिं. त्यांथी विहार करी रहिमतपुर पधार्या, अने श्री संघना आग्रहथी त्यां फागण चोमासा सुधी स्थिरता करी. त्यांथी विचरता विचरता लुणद गाम आव्या. आ वखते चैत्री ओळी नजीकमां आववानी होवाथी लुणदना श्री संघे विनति करी के “ महाराज साहेब! जो आप ओळी सुधी स्थिरता करो तो आपना सदुपदेशथी ओळीनी पवित्र क्रियामां घणा भाई-बहेनो जोडाशे, आयंबिलनी तपस्या विशेष प्रमाणमां थशे, अने नवपदनुं आराधन सक्रिय थशे."
आ प्रमाणे श्री संघनी विनति थवाथी, अने तपस्यादि विशेष लाभर्नु कारण जाणी चैत्री ओळी सुधी लुणदमां स्थिरता करी. . त्यांथी ग्रामानुग्राम विचरता अने गुरु-सेवामां लाभ मानता दीवाघाटनी तलेटीमां पधार्या. मुनिराज श्री भावविजयजी महाराज पोताना शिष्य-समुदाय साथे नजीकमां पधार्या छे, एवा समाचार फेलातां पूना शहेरना श्री संघ वती श्रीयुत कान्तिलालभाई विगेरे गृहस्थो सामा आव्या,