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________________ ४१ श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण । वस्तु छन्द. जंबूदीवइ जंबूदीवइ भरह वासंमि ॥ खोणीतल मंडण मगह देस, सेणिय नरेसर । वर गुव्वर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूइ सुंदर ॥ तसु भन्जा पुहवी सयल, गुणगण रूव निहाण । ताण पुत्त विजा निलो, गोयम अतिहि सुजाण ॥७॥ भाषा. चरम जिणेसर केवलनाणी, चउबिह संघ पइट्ठा जाणी ।। पावापुरी स्वामी संपत्तो, चउविह देव निकायहि जुत्तो ॥८॥ देव समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति छीजे ॥ त्रिभुवन गुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंत पइट्ठा ।।६।। क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चौरा ।। देव दुंदुभि आकाशे बाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी।१० कुसुम कृष्टि विरचे तिहां देवा, चौसठ इंद्र जसु मागे सेवा । चामर छत्र शिरोवरि सोहे, स्वहि जिनवर जग सहु मोहे ।११॥ उपसम रस भर वरसंता, जोजन वाणी वखाण करंता ।। जाणवि वर्द्धमान जिण पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया १२ कांति समूहे झलझलकंता, गयण विमाणहि रणरणकंता॥ पेखवि इंदभूइ मन चिंते, सुर आवे अम यज्ञ हुवंते ॥१३॥ तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता ॥ तो अभिमाने गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे॥१४॥ मूढा लोक अजाण्यु बोले, सुर जाणंता इम कांइ डोले । मूभागल को जाण भणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥१५॥
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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