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(२) श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण. मइप्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम संति कित्तणं ॥ ४ ॥ मागहिमा ॥ किरिश्राविहि संचित्र कम्म किलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचिनं च गुणेहिं महामुणि सिद्धिगयं ॥ अजिअस्स य संति महा मुणिणो वित्र संतिकरं, सययं मम निव्वुइ कारणयं च नमसणयं ॥ ५ ॥ प्रालिंगणयं ॥ पुरिसा जइ दुक्खवारणं, जइ भ विमग्गह सुक्खकारणं ॥ अजिभं संतिं च भावो, अभयकरे सरणं पवजहा ।।६॥मागहिया ।। अरह रइ तिमिर विरहिअमुवरय जरमरणं, सुर असुर गरुल भुयगवइ पयय पणिवइयं ॥ भजियमहमविश्र सुनय नय निउणमभयकरं, सरणमुवसरित्र भुवि दिविजमहिअं सययमुवणमे ।। ७॥ संगययं ।। तं च जिणुत्तममुत्तम नित्तम सत्तधरं, अञ्जव मद्दव खंतिविमुत्ति समाहि निहिं ॥ संतिकरं पणमामि दमुत्तमतित्थयरं, संतिमुणी मम संतिसमाहिवरं दिसउ ॥ ८॥ सोवाणयं ।। सावस्थिपुव्वपत्थिवं च वरहस्थि मत्थय पसत्थ वित्थिन्न संथिअं, थिर सरिच्छ वच्छं मयगल लीलायमाण वर गंधहत्थि पत्थाण पत्थियं संथवारिहं । इथिहत्थबाहुं धंतकणग रुअग निरुवहय पिंजरं पवर लक्खणोवचित्र सोमचारुरूवं, सुइ सुहमणाभिराम परम रमणिज वरदेव दुंदुहि निनाय महुरयर सुहगिरं ॥ ६ ॥ वेड्डओ ।। अजिअं जिारिगणं, जिन सबमयं भवोहरि ॥ पणमामि अहं पयो , पावं पसमेउ मे भयवं ॥ १० ॥ रासालुद्धमओ ।। कुरु जणवय हस्थिणार नरीसरो पढमं तो महाचकव