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भक्तामर - कथा ।
नहीं है। उनका मंत्री बड़ा बुद्धिमान् है । उसका नाम मतिसागर है । वह जिनभगवानूका बहुत भक्त है ।
एक दिन भोजराज सभामें बैठे हुए थे । उन पर चँवर दुर रहे थे । इतने में कालिदास आदि कई पंडित, जो सब शास्त्रों के अच्छे जानकार थे, राजसभा में आए। उन्हें अपने पाण्डित्यका खूब अभिमान था । वे मंत्र-शास्त्रके भी अच्छे विद्वान् थे । उन्होंने राजा से कहा- महाराज ! हम सुनते हैं कि आपके राज्यमें नंगे साधुओंका बहुत जोर है । वे बड़े विद्वान् समझे जाते हैं । पर वास्तवमें वे ढोंगी हैं और कुछ नहीं जानते हैं । यदि वे कुछ जानते हैं तो उन्हें हम सरीखा कोई आश्चर्य बतलाना चाहिए ।
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पंडितने अपने पाँवों को
इतना कहकर उनमेंसे कालिदास नामके छुरीसे काट लिये, और कालिकाका आराधन कर, जिसे कि उसने पहलेसे ही साध रक्खा था; फिर उन्हें वैसे हो जोड़ लिये । और इसी तरह भार्गवी नामके पंडितने अम्बिकाकी आराधना द्वारा अपना मनोदर रोग दूर किया । माद्य नामके पंडितने सूर्यकी उपासना द्वारा कोढ़से झरते शरीरको आराम कर उसे सुन्दर बना लिया । इत्यादि बहुती आश्चर्य भरी बातें राजाको दिखला कर उन्होंने कहा- महाराज ! हम सब शास्त्रोंके जानकार हैं; मंत्र - शास्त्र पर भी हमारा पूर्ण अधिकार है । ऐसी हालत में आपके पवित्र राज्यमें विद्वानोंका आदर न होकर ढोंगियोंकी पूजा हो यह कितने कष्टकी बात है ! आपको इस पर विचार करना चाहिए |
उन पंडितोंके पाण्डित्य प्रगट करनेवाले वचनोंको सुनकर राजाने अपने मंत्री से कहा- तुम अपने गुरुओंको मेरे सामने उपस्थित करो ।