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सर्व भय निवारक मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि
संग्राम-वारिधि-महोदर-बंधनोत्थम् । तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव,
___ यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमान-धीते ॥४७॥ महामत्त गजराज और मृगराज दवानल, .
फणपति रण परचण्ड नीरनिधि रोग महाबल । बन्धन ये भय आठ डरपकर मानों नाशें,
तुम सुमरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशॆ ॥ इस अपार संसार में, शरन नाहिं प्रभु कोय ।
तातें तुम पद-भक्त को, भक्ति सहायो होय ॥ ___अर्थ-हे संकट निवारक प्रभो ! जो मनुष्य आपके इस स्तवन को पढ़ता है उसके, मदोन्मत्त हाथी, सिंह, दावानल (प्रचण्ड अग्नि), सर्प, युद्ध, समुद्र,जलोदर आदि रोग तथा बन्दीघर हपकड़ी बेड़ी आदि के बन्धन का भय स्वयं तत्काल डर कर नष्ट हो जाता है ॥४७॥
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो बड्ढमाणाणं । मन्त्र-ॐ नमो ह्रां ह्रीं ह्र ह्रः य क्ष श्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।
The intelligent man, who chants this prayer offered to Thee is in no time liberated from the fear born of wild elephants, lion, forest-conflagration, snakes, battles oceans, dropay and shackles. 47.