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(२०) सन्तान-लक्ष्मी-सौभाग्य-विनय.बुद्धिदायक ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं
नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु । तेजःस्फुरन्मणिषु याति यथा महत्वं,
नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेऽपि ॥२०॥
जो सुबोध सोहै तुम मांहि, हरि हर प्रादिक में सो नाहिं। जो धुति महा रतन में होहि, कांच खण्ड पावै नहिं सोय ॥
अर्थ- हे प्रभो ! जैसा पूर्ण ज्ञान आप में विद्यमान है वैसा हरि हर आदि अन्य किसी में नहीं है। जिस तरह की महत्वपूर्ण कान्ति रत्नों में होती है वैसी कान्ति चमकीले कांच के टुकड़े में नहीं मिलती ॥२०॥
__ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो चारणाणं ।
___मंत्र-ॐ श्रां श्रीं धूं श्रः शत्रु-भय-निवारणाय ठः ठः नमः स्वाहा।
Knowledge abiding in the Lords like Hari and Hara does not shine so brilliantly as it does in You. Effulgence, in a piece of glass, though filled with rays, the rays never attains that glory, which it does in sparkling gems, 20.