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'सर्वारिष्ट निवारक
मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेद
मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी - इलेषु, मुक्ताफल- द्युतिमुपैति ननूद - बिन्दुः ॥ ८ ॥
तुव प्रभावतें कहूँ विचार, होसी यह थुति जन-मनहार । ज्यों जल कमल पत्र पै पर, मुक्ताफल की द्युति विस्तरं ॥
अर्थ – हे नाथ ! आपके स्तवन की ऐसी महिमा मानकर मैं अल्पबुद्धि भी आपकी स्तुति प्रारम्भ करता हूँ । आपके प्रभाव से यह स्तुति सत्पुरुषों का चित्त आकर्षित करेगी। जैसे कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूंद मोती सरीखी शोभायमान होती है || ८ ||
ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं णमो पादानुसारिणं ।
मन्त्र — ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रः असि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौ झों स्वाहा । ॐ ह्रीं लक्ष्मण रामचन्द्र देव्यै नमः स्वाहा ।
Thinking thus O Lord, I though of little intelligence, begin this eulogy (in praise of you ), which will, through Your magnanimity, captivate the minds of the righteous, water drops, indeed assume the lustre of pearls on lotus leaves. 8.