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भक्तामर स्तोत्र
वसन्ततिलकावृत्तम्।
__सर्व विघ्न उपद्रवनाशक भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा____ मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादावालम्बनं भव-जले. पततां जनानाम् ॥१॥
शत्रु तथा शिरपीड़ा नाशक यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय-तत्त्वबोधा
दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथैः । स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः, .. स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥ (श्री पं० हेमराजजी रचित भाषा भक्तामर)
. दोहा आदि पुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार धरम धुरन्धर परमगुरु, नमो आदि अवतार ।।
, चौपाई. .. सुरनत-मकुट रतन छबि करें, अन्तर पाप तिमिर सब हरें। जिनपद बन्दों मनवचकाय, भवजल पतित-उधरन सहाय ।। श्रुत-पारग इन्द्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव । शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिस प्रमुकी वरनों गुनमाल.॥