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(३४) मंत्र साधना सम्बन्धी आवश्यक बातें वर्तमान भौतिक युग में खान-पान और रहन-सहन सब बदल गया है। अब खान पान में वह शुद्धि नहीं रह गई है जो एक सच्चे श्रावक के लिए होनी चाहिये । इसी कारण अब त्यागी-व्रतीजनों के लिये अलग से आहार की व्यवस्था होती है। जैन मंत्रों में तो पवित्रता और सात्विक वृत्ति का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।
भोजन में हाथ का पिसा मर्यादित आटा, कुयें का पानी, शुद्ध सामान, एक बार भोजन, इन्द्रिय-विजय, ब्रह्मचर्य पालन, चटाई पर सोना, भावों की पवित्रता, धर्मनिष्ठा, साहस, धैर्य, मंत्र-साधनविधि का पूर्ण ज्ञान, जाप के योग्य एकान्त पवित्र स्थान तथा आसन, माला, धूप आदि अनुकूल सामग्री जैसी अनेक बातें अपेक्षित हैं । इन सब बातों के बिना मंत्र साधन नहीं करना चाहिये ।
मन्त्र-साधना अपनी कार्य-सिद्धि के लिए जैसे अन्य उपाय किये जाते हैं उसी प्रकार मंत्र आराधना भी एक उपाय है। मंत्रों द्वारा देव देवी अपने वश में किये जाते हैं, उन वशीभूत देवों के द्वारा अनेक कठिन कार्य करा लिये जाते हैं तथा मंत्रों द्वारा मानसिक वाचनिक शारीरिक शक्ति में वृद्धि भी की जा सकती है। __मन्त्र साधन के पूर्व किसी मन्त्रवादी विद्वान् से मन्त्र साधन करने की समस्त विधि जान लेना आवश्यक है। बिना ठीक विधि जाने मन्त्र साधन करने से कभी कभी बहुत हानि हो जाती है, मस्तिष्क खराब हो जाता है, मनुष्य पागल हो जाते हैं।
यदि देवों को वश में करने का उद्देश्य न रख कर किसी कार्यविशेष की पूर्णता के लिए मंत्र जाप किया जाय तो हानि की संभाबना नहीं रहती है।
परन्तु इतनी बात निश्चित है कि जब मनुष्य के शुभ कर्म का