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तित्थोगाली पइन्नय]
[३६५ यदि कोई व्यक्ति किसी एक तथ्य पर भी अश्रद्धा करता है तो वह जमाली के समान मिथ्यात्वी होता है । १२१४। जिणसासण भत्तिगतो, वरतरमिहसील विप्पहीणो वि । न य नियमपरो वि जणो, जिणसासण बाहिरमतीओ ।१२१५॥ (जिनशासन भक्तिगतः, वरतर इह शीलविप्रहीनोऽपि । न च नियम परोऽपि जनः, जिनशासन बहिर्मतिस्तु ।)
जिन शासन के प्रति भक्ति रखने वाला व्यक्ति चाहे श्रेष्ठ शील से रहित अथवा नियमों से परे अर्थात् नियमों का पालन न भी करता हो तो भी वह जिन-शासन से बाहर मति वाला नहीं अर्थात् जिन शासन के अन्दर हो है ।१२१५॥ (क्यों कि) जह निम्मले पडे, पंडुरम्मि सोभाविणा वि रागेणं । सुंदर रागे वि कए, सुंदरतरिया हवई सोभा ।१२१६। (यथा निर्मले पटे पाण्डुरे, शोभा विनापि रागेण । सुन्दर रागे च कृते, सुन्दरतरा भवति शोभा ।)
जिस प्रकार एक निर्मल श्वेत वस्त्र में बिना रंग के भी शोभा अर्थात् सुन्दरता होती है और श्वेत वस्त्र पर कोई सुन्दर रंग चढ़ा देने पर उस वस्त्र की शोभा और बढ़ जाती है । १२१६। । एवमह निम्मले दरिसणंमि, सोभा विणावि सीलेण । सीलसहायम्मि उ दरिसणम्मि, अहिया हवइ सोभा ।१२१७/ (एवमथ निर्मले दर्शने, शोभा विनापि शीलेन । शीलसहाय्ये तु दर्शने, अधिका भवति शोमा ।) ____इसी प्रकार दर्शन के निर्मल होने पर उसमें शील के बिना भी शोभा होती है। उस निर्मल दृष्टि में यदि शील का पुट और लग जाय तो उसकी शोभा अधिक हो जाती है ।१२१७' भद्रेण चरित्ताओ, सुठ्ठयरं दसणं गहेयव्वं । सिझति चरणहीणा, देसणहीणा न सिझति ।१२१८।