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________________ ३४२ } । तित्थोगाली पइन्नय (काले [कालनिधौ] कालज्ञानं, नव्यं पुराणं जचत्रिषु वर्षेषु = | शिल्पशतं कर्माणि च. त्रीणि प्रजायाः हितकराणि ।) काल नामक निधि में वर्तमान वस्तु विषयों भावी तीन वर्षों के वस्तु विषयों का तथा अतीत तीन वर्षों के वस्तु विषयों का नवीन और पूरातन कालज्ञान तथा प्रजा के लिये हितकारी सैंकड़ों प्रकार के शिल्पों, कृषि वाणिज्यादि कर्मों एवं कालज्ञान की उत्पत्ति होती है ।११३८ः लोहाण य उप्पत्ती, होई महाकाले आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्स य, मणि मोत्ति सिलप्पवालाणं ।११३९। (लोहानां च उत्पत्तिः, भवति महाकाले आकराणां च । रूप्यस्य स्वर्णस्य च, मणिमौक्तिकशिला [स्कटिक] प्रवालानाम् ।) महाकाल निधि में सभी प्रकार के लोहों, विविध खनिजों चांदी, सोना, मरिण, मौक्तिक, स्फटिक आदि शिलाओं एवं मूगों (प्रवालों) को उत्पत्ति होती है । ११३६. सेणाण य उप्पत्ती, आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य दंडनीति, माणगे रायनीती य ।११४०। (सैन्यानां च उत्पत्तिः, आवरणानां [संनाहानां], च प्रहरणानां च । सर्वा च दण्डनीतिः, माणवके राजनीतिश्च ।) चक्रवतियों की माणवक नामक निधि में चतुरग सैन्यों, आवरणों ( शत्रु के शस्त्रास्त्रों से रक्षा करने वाले तनुत्राणों, कवचों, ढालों, प्रहार करने योग्य सभी शस्त्रों, अस्त्रों, सब प्रकार को दण्डनीतियों एवं राजनीति की उत्पत्ति होती है । ११४०।। नट्टविही नाउगविही, कव्यस्स चउ विहस्स उप्पत्ती । संखे महानिहिम्मि, होइ तुडियंगाणं च सव्वेसिं ११४१॥ - = वर्तमानवस्तुविषय, अनागतवर्षत्रयविषयं प्रतीतवर्षत्रयविषयमित्यर्थः । त्रीणि-कालज्ञान-शिल्पशत-कृषिवाणिज्यादिकर्माणि च इत्यर्थः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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