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(विमले उत्तरश्चैव, अर्हच्च महाबलः । देवानन्दश्च अर्हत्, समाधिं प्रतिदिशन्तु मे ।)
| तित्थोगाली पइन्नय
विमल (१८), उत्तर (१६), अर्हत् महाबल ( २० ) और अर्हत् देवानन्द (२१) मुझे समाधि प्रदान करें । ११२७ ।
[ इन गाथाओं में २४ के स्थान पर केवल २१ तीर्थंकरों के ही नाम हैं। बार-बार दुहराए गए -- " समाहिं पडिदिसंतु मे " - इस पद में तीन नाम लुप्त हो गए हैं। आहोर से प्राप्त प्रति में तीसरे तीर्थंकर महाघोष का नाम नहीं है, कि लिपिक की असावधानी से वह नाम नहीं लिखा गया है । ]
एते वृत्ता चउव्वीसं, एरवतंमि य केवली । आगमेसाए होहिंति, धम्म तित्थस्स देगा | ११२८। ( एते उक्ताश्चतुर्विंशति, एरवते च केवलिनः । आगामिन्यां भविष्यन्ति, धर्मतीर्थस्य देशकाः । )
ये जो २४ तीर्थं कर बताये गये है वे आग़ामी उत्सर्पिणी काल में ऐरवत क्ष ेत्र में धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले होंगे । ११२८ ।'
सुमंगले य सिद्धत्थे, रिणव्वा य महाजसे धम्मंज्झए य रहा, ग्रागमिस्सारण होक्खई ८७ सिरिचंदे पुप्फकेऊ, महाचंडेय केवली । सुय सागरे य रहा, श्रागमिस्सारण होक्खई ८८ सिद्धत्थे पुण्घो से य. महाघोसे य केवली । सच्चसेणे य रहा, श्रागमिस्सा होक्खई सूरसेणे य रहा, महासेणे य केवली । सव्वाणंदेय अरहा, देवउत्तेय होक्खई ॥६० सुपासे सुव्व रिहा रहे य सुकोसले । रहाणंतविजए, प्रायमिस्सारण होक्खई |ह १ विमले उत्तरे प्ररहा रहा य महाबले । देवादे य रहा, प्रागमिस्सारण होक्खई । ६२
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