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तित्थोगाली पइन्नय ]
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भी कार्तिक मास के कृष्णापक्ष की अन्तिम रात्रि में चन्द्र का स्वाति नक्षत्र के साथ योग होने पर सिद्ध अर्थात् संसार से मुक्त होंगे ।१११२।
(माहोर मे प्राप्त प्रति में ऊपर को गाथा का अन्तिम अर्द्ध भाग और यह गाथा लिपिक के प्रमाद से छूट गई है और इसके परिणाम स्वरूप आगे की बहुत सी गाथाओं में पूर्व की गाथा के साथ आगे की गाथाओं के अन्तिम भाग जोड दिए गए हैं।) एसा उ मते (ए) भणिता, पउम जिणिदस्स संकहा पुण्णा । एत्तो परं तु जाणह, जिणंतरा चेव पडिलोमे ।१११३। (एषा तु मया भणिता, पद्मजिनेन्द्रस्य संकथा पुण्या । इतः परं तु जानीहि, जिनान्तराणि चैव प्रतिलोमानि ।)
यह मेंने भगवान महाद्म तीर्थंकर को पवित्र कथा का कथन किया। इसके पश्चात् प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल के २४० तीर्थंकरों का अन्तर काल है उसी को प्रतिलाम (उल्टे क्रम) से आगामी उत्सपिरणी काल के २४० तोथंकरों का अन्तराल-काल समझना चाहिए ।१११३। ते चेव जम रिक्खा. ते वि य मासा तिही उ ता चेव । आउग उच्चचाई, वन्ना रुक्खा वि ते चेव ।१११४। (ते चैव जन्म-ऋक्षाः, तेऽपि च मासाः तिथयस्तु ताश्चैव । आयु उच्चत्वादिनि, वर्णाः वृक्षा अपि ते चैव )
प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल के २४० तीर्थंकरों के जो जन्म (च्यवन, जन्म, अभिनिष्क्रमण, केवल-ज्ञान, तीथ-प्रवर्तन, मोक्षगमन) आदि के नक्षत्र: मास और तिथियां उनकी प्रायु, शरीर की लम्बाई, शरोर केवर्ण एवं चैत्य वृक्ष आदि थे-वे ही आगामी उत्सपिणी काल
२४० तीर्थ करों के भी होंगे ।१११॥ नवरं पडिलोमाई, तित्थोगालीए वीर भणियाई। तित्थगरे आगमिस्से, नाम नामहि केत्तेहि १११५॥