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________________ तित्थोगाली पइन्नय 1 धना विहिन्नू, विणयच सच्च सोय संपण्णो । गुरुसाहुपूयरओ, संदार निरतो जणो तइया | ११०६ । धर्माधर्मविधिज्ञः विनयत्वसत्यशौचसम्पन्नः । गुरुसाधुपूजारतः, स्वदारनिरतः जनः तदा । ) , [ ३३१ उस समय के मानव धर्म तथा श्रधर्म के भेद को भली-भांति जानने वाले, विनय, सत्य एवं शौच सम्पन्न, गुरु और साधु जनों की पूजा में तत्पर और स्वदार संतोषी होंगे । ११०६। अच्छय सविण्णाणो, धम्मे य जणस्स आयरो तइया । विज्जा पुरिसा, पुज्जा, वरिज्जइ कुलं च शीलं च । ११०७ । ( अच्छति च सविज्ञानः, धर्मे च जनस्य आदरस्तदा । विद्यापुरुषाः, पूज्याः, वरीय ते कुलं च शीलं च । ) उस समय के लोग विज्ञान सम्पन्न और धर्म के प्रति प्रादर भाव रखने वाले होंगे। उस समय विद्यासम्पन्न पुरुषों का पूजासत्कार किया जायगा और कुल तथा शोल को सर्वाधिक महत्त्व दिया जायगा ।११०७ । एवं कुसुमसमिद्ध े, जणवय देसंमि विहरइ भगवं । 9 नवसु विवासे सेवं विहरति जिणा जिणा विंति । ११०८ | ( एवं कुसुमसमृद्ध, जनपद- देशे विहरति भगवान् । नवस्वपि वर्षेष्वेवं विहरन्ति जिना : (इति) जिनाः ब्रुवन्ति ।) 1 इस प्रकार फूलों से लहलहाते हुए जनपदों में भगवान् महापद्मविचरण करेगे । शेष 8 क्षेत्रों में भी जिनेश्वर इसी प्रकार विचरण करेंगे - ऐसा जिनेश्वर फरमाते हैं । ११०८ । सुबहुहिं केवलिहिं य, मणपज्जेव ओहि नाण इड्ढीहिं । समणगण संपरिवुडा, विहरंति जिणा तिहुयणिंदा । ११०९ । (सुबहुभिः केवलिभिश्च, मनः पर्यवावधि ज्ञान - ऋद्धिभिः । पण संपरिवृताः, विहरन्ति जिनाः त्रिभुवनेन्द्राः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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